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________________ आंतरिक अज्ञात वेदना से पीड़ित होते हैं । इस वेदना का प्रतिकार आस्तिकता की ही भावना है। उच्च तथा पवित्र आत्माओं की आराधना जादू का सा चमत्कार करती है । १३० १३० नवकार मंत्र की निष्काम भाव से साधना करना समुचित है। इससे लौकिक एवं पारलौकिक सभी कार्य सफल होते हैं । इस संबंध में यह आवश्यक है कि आराधक जप करने की विधि को यथावत समझें, जप करने के स्थान के औचित्य को भी जाने क्योंकि इनकी भिन्नता से फल में भी भिन्नता होती है । जप करने वाला साधक सदाचरणशील, शुद्धात्मा, सत्यभाषी, अहिंसक तथा प्रामाणिक होलक है, तो उसे मंत्र - आराधना का उत्तम "मिलता फल प्रदान करती है। उसी प्रकार नवकार मंत्र भी दृढ़ श्रद्धापूर्वक निष्काम भाव से फलासक्ति के बिना समुचित विधिपूर्वक जप करने से पूर्ण फल प्रदान करता है। मंत्र जप में स्थान शुद्धि भी आवश्यक है । उचित समय का भी महत्त्व है। कुसमय में अशुद्ध स्थान पर किया गया जप अभिष्ट फलप्रद नहीं होता । इसलिए मंत्र का जप समुचित समय में शुद्ध मानसिक, वाचिक एवं कायिक शुद्धि पूर्वक विधि सहित करना चाहिए। वैसे तो सामान्यतः जप किसी भी अवस्था में करने से फल देता ही है, जैसे मिश्री को कोई भी व्यक्ति किसी भी अवस्था में खायें, मुँह में मिठास तो आयेगा ही, किंतु विधि के साथ जप करने से उसका विशिष्ट फल होता है, आत्मशुद्धि होती है । नवकार मंत्र की मुख्य विशेषता यह है कि इसमें समस्त मातृका ध्वनियाँ विद्यमान हैं । यह समस्त बीजाक्षरों से युक्त मंत्र है। इसमें मूल ध्वनि रुप बीजाक्षरों का संयोजन शक्ति क्रमानुसार किया गया है, इसलिए यह सर्वाधिक शक्तिशाली है। - यद्यापि इस मंत्र का यथार्थ लक्ष्य मोक्ष प्राप्ति है किंतु लौकिक दृष्टि से भी यह समस्त कामनाओं को सिद्ध करता है । कहा गया है कि उपसर्ग, पीड़ा, क्रूर ग्रह दर्शन, भय तथा आदि भी हो तो भी शुभ ध्यान पूर्वक नवकार मंत्र का जप करना चाहिए उससे परम शांति और सुख प्राप्त होता है । १३१ संक्षेप में कहा जा सकता है कि यह मंत्र आत्मा का कल्याण तो करता ही है, सभी प्रकार के अरिष्ट, रोग, व्याधि, विघ्न एंव बाधाओं को दूर करता है । समस्त सिद्धियाँ प्रदान करता है । यह कल्पवृक्ष के सदृश है जो श्रद्धा और विश्वास के साथ जिस प्रकार की भावना से नवकार मंत्र की साधना करता है, वह उसी प्रकार का फल प्राप्त करता है । सभी मंत्रों में नवकार मंत्र श्रेष्ठ मंत्र है । उसके बहुत उपकार है जिसका वर्णन नहीं किया सकता । १ १३२ (११५)
SR No.002297
Book TitleJain Dharm ke Navkar Mantra me Namo Loe Savva Sahunam Is Pad ka Samikshatmak Samalochan Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorCharitrasheelashreeji
PublisherSanskrit Bhasha Vibhag
Publication Year2006
Total Pages350
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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