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________________ महाकवि कालिदास ने कुमारसंभव के पाँचवे सर्ग में लिखा है - “शरीरमाद्यम् खलु धर्म - साधनम् " अर्थात् शरीर धर्म का आद्य - पहला या मुख्य साधन है। शारीरिक स्वस्थता पर ही मानसिक स्वस्थता का आधार रहा है । अंग्रेजी में एक प्रचलित कहावत है - ___ "sound mind in a sound body.१२८” अर्थात स्वस्थ शरीर में ही स्वस्थ मन रह सकता है। अस्वस्थ शरीर में मन को स्वस्थ रखना आसान काम नहीं है। - नवकार मंत्र का प्रभाव नवकार मंत्र का बड़ा अद्भुत प्रभाव है। इस मंत्र की साधना से ऋद्धि सिद्धि प्राप्त की जा सकती है। इससे आध्यात्मिक शक्ति का विकास होता है किंतु इसे सिद्ध करने के लिए सच्ची श्रद्धा और दृढ़ विश्वास की परम आवश्यकता है। आधुनिक काल के वैज्ञानिक भी यह स्वीकार करते हैं कि अस्तिक्य भाव के बिना कार्य में भी सफलता प्राप्त करना संभव नहीं है। अमेरिका के डॉक्टर होवार्ड रस्क Reader Digest में कहा है कि रोगी तब तक स्वास्थ्य लाभ नहीं कर सकता जब तक वह अपने आराध्य में विश्वास नहीं करता। आस्तिकता ही समस्त रोगों को दूर करने वाली है। जब कोई रोगी चारों ओर से निराश हो जाता है, उस समय आराध्य के प्रति की गई प्रार्थना उसके लिए प्रकाश का कम करती है। प्रार्थना का फल इतना होता है कि हम उसके संबंध में सोच तक नहीं सकते हैं। दृढतायुक्त हृदय के कोने से निकली हुई सशक्त भावों की अंतर्ध्वनि महान् से महान् कार्य सिद्ध करने में सफल हो जाती है। १२९ अमेरिका के न्यायाधीश हेरोल्ड मेडिना Reader Digest का मंतव्य है कि आत्मशक्ति का विश्वास तभी होता है जब मनुष्य यह अनुभव करता है कि मानवीय शक्ति से परे भी कोई वस्तु है। अत: श्रद्धा के साथ की गई प्रार्थना बड़ा चमत्कार उत्पन्न करती है। प्रार्थना में एक अद्भुत शक्ति अनुभूत की जा सकती है। जीवन शोधन - के लिए आराध्य के प्रति की गई विनययुक्त प्रार्थना अत्यंत फलप्रद होती है। नेशनल एसोसिएशन फॉर मेंटल हॉस्पिटल ऑफ अमेरिका के भूतपूर्व मेडिकल डायरेक्टर का अभिमत है कि समस्त रोग शारीरिक, मानसिक एवं आध्यात्मिक क्रियाओं से संबंधित हैं, अत: जीवन में जब तक धार्मिक प्रवृत्ति का उदय नहीं होता, रोगी को स्वास्थ्य लाभ होना कठिन है। प्रार्थना धार्मिक प्रवृत्ति को उत्पन्न करती है। आराध्य को उद्दिष्ट कर की गई प्रार्थना बहुत बड़ा आत्म संबल है। अब तक मानव को अदृश्य तत्वों की रहस्यपूर्ण शक्ति का पता लगाना नहीं आता। जितने भी मानसिक रोगी दृष्टिगोचर होते हैं, किसी (११४)
SR No.002297
Book TitleJain Dharm ke Navkar Mantra me Namo Loe Savva Sahunam Is Pad ka Samikshatmak Samalochan Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorCharitrasheelashreeji
PublisherSanskrit Bhasha Vibhag
Publication Year2006
Total Pages350
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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