SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 144
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ पंच नमस्कृति दीपक में परमेष्ठी मंत्र "पंचपरमेष्ठी दीपक नामक ग्रंथ की रचना दिगंबर जैन परंपरा के भटट्रारक श्री सिंहनंदीने की । यह ग्रंथ क्रमश: साधन अधिकार, ध्यान अधिकार, कर्म अधिकार, स्व अधिकार तथा फल अधिकार के रुप में पाँच अधिकारों में विभक्त है । प्रत्येक अधिकार में मंत्र विषयक अनेक विवरण दिये गये हैं । "" इसमें पंचपरमेष्ठी के ध्यान के संबंध में लिखा है कि इससे समस्त विघ्न नष्ट होते हैं, उन्होने ॐ नमः सिद्धिम् के नाम से एक मंत्र का उल्लेख किया है। इसकी साधना से सब कार्य सिद्ध हो जाते हैं। फिर आगे लिखा है कि परम गुरुओं का पंचपरमेष्ठियों का मंत्र भी स कार्यों की सिद्धि करता हैं 1 यह “ॐ नमो अर्हद्भ्यः ” यह इस मंत्र का प्रथम पद है, “ॐ नमः सिद्धेभ्यः इसका दूसरा पद है । “ ॐ नमो आचायेभ्यः " यह तीसरा पद है । “ॐ नमः उपाध्यायेभ्यः” यह चौथा पद है । “ॐ नमः सर्व साधुभ्यः " यह पाँचवा पद है । इस प्रकार इस संस्कृत मंत्र से सब कार्य सिद्ध होते हैं । १२२ यह संस्कृत में प्रणीत मंत्र बहुत संक्षिप्त और सरल है । इसका अभ्यास साधारण, विशिष्ट सभी साधक कर सकते हैं। अक्षर चाहे कम हो, पर मंत्र में अद्भूत शक्ति होती है । यथावत् रुप में विधिपूर्वक पवित्र भावना के साथ मंत्र की यदि आराधना, साधना की जाती है तो वह बहुत ही फलप्रद होता है। यह मंत्र बहुत उपयोगी है । सुपरिचित शब्दों से निर्मित है। अतः अभ्यास में सुगम है । उसी ग्रंथ में ॐ का विश्लेषण करते हुए लिखा है - अरिहंता असरीर, आयरिया तह उवज्झाया मुणिणो । पढमक्खरानिप्पणो, ॐकारो पंचपरमेट्ठी ॥ अरिहंत, अशरीर, सिद्ध, आचार्य, उपाध्याय और मुनि इन पाँचों पदों के प्रथम अक्षरों के मिलने से ॐ बनता है । ये पद समस्त मंत्रवाद के पदों में सारभूत है । इस लोक और परलोक के इष्ट - इच्छित फल प्रदान करने में समर्थ है । इसलिए यह जानकर इसके अनंत ज्ञान आदि गुणों को भलीभाँति स्मरण करते हुए वाणी से उच्चारण करते हुए जाप करें । शुभोपयोग रुप तीन गुप्तियों में अवस्थित होते हुए मौन पूर्वक ध्यान करें । पुनश्च अरिहंत पद द्वारा सूचित अंतज्ञानादि गुण युक्त परमेश्वर है, ऐसा चिंतन और ध्यान करें । १२३ (११२) -
SR No.002297
Book TitleJain Dharm ke Navkar Mantra me Namo Loe Savva Sahunam Is Pad ka Samikshatmak Samalochan Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorCharitrasheelashreeji
PublisherSanskrit Bhasha Vibhag
Publication Year2006
Total Pages350
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy