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“सेयाणं परं सेयं, मंगल्लाणं च परममंगलं ।
पुन्नाणं परमपुन्नं, फलं फलाणं परमरम्मं ॥" ३) नवकार मंत्र श्रेयस्करों - कल्याणकारी पदार्थों में परम श्रेयस्कर है। समस्त मंगलों में
मांगलिक पदार्थों में परम मंगलमय है। समस्त पुण्यों में - पवित्र पदार्थों में परम पुण्य, परम पवित्र हैं। समस्त फलों में परम सुन्दर फल है ।११२
"हरइ दुहं कुणइ सहुहं, जणइ जसं सोसए भव-समुदं ।
इहलोय - पार लोइय - सुहाण मूलं नमुक्कारो॥" ४) नवकार दुःख का हरण करता है। वह सुख प्रदान करता है । यशस्वीता प्राप्त कराता
है। संसाररुपी सागर को वह सूखा डालता है - जन्म मरण को मिटा देता है। इस लोक और परलोकके सुखों का यह मूल है।
“इक्को वि नमुक्कारो, परमेट्ठीणं पगिट्ठभावाओ।
समलं किलेसजालं, जलं व पवणो पणुल्लइ ॥" ५) उत्कृष्ट भाव पूर्वक पंचपरमेष्ठियों को उद्दिष्ट कर किया गया एक नमस्कार उसी प्रकार समस्त क्लेशों को दूर कर देता है, जिस प्रकार पवन जल को सूखा देता है ।११३
“एसो मंगल - निलओ, भव - विलओ सयलसर्घ - सुहजणओ।
नवकार - परममंत्र, चिंतियमित्तो सुहं देइ ॥" ६) परम मंत्र नवकार मंगल का निलय है, आवास स्थान है। वह राग - द्वेष मूलक संसार
का विलय करने वाला है। समस्त संघ को, मानव समुदाय को सुख उपजाने वाला है। चिंतन करने मात्र से सुख देने वाला है।
“भोयण-समए, सयणे, विवोहणे पवेसणे भए वसणे।
पंच नमुक्कारं खलु, समरिज्जा सव्व कालम्भि ॥" ७) भोजन के समय, शयन के समय, विबोध - उठने के समय, घर आदि में प्रवेश के
समय, भयोत्पादक स्थिति के समय, कष्ट के समय, सभी समय पाँच नवकार मंत्र का स्मरण करना चाहिए।११४ नवकार के महात्म्य के सूचक निम्नांकित संस्कृत श्लोकों का उच्चारण, स्मरण और चिंतन करना साधक के लिए बहुत उपयोगी है।
त्वं मे माता पिता नेता, देवो धर्मो गुरुः परः।
प्राणा: स्वर्गोऽपवर्गश्च, सत्वं तत्वं मतिर्गतिः । ८) साधक श्रद्धा और भक्ति पूर्वक नवकार को संबोधित कर कहता है - तुम मेरे लिए
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