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________________ पहचान लेते हैं। जिसे अब तक हम पात्र मानते रहे हैं, वह वस्तुत: स्वयं परोसी हुई कोई वस्तु होती है। पात्र से आगे की जो धरती है, वह मंत्र की धरती है और यही धरती वह धरती है जो हमारे अनुभव जगत् से संबद्ध है और अत्याधिक सूक्ष्म है ।१०७ नवकार की महिमा श्लोक : ___ यदि विशाल उच्च भवन का निर्माण किया जाता है तो सबसे पहले उसकी नींव को सुदृढ बनाना आवश्यक हैं, क्योंकि वह नींव ही भवन के भार को झेलती है। यदि नींव दृढ हो तो भवन दीर्घकाल तक टिका रहता है। उसमें जो लोग निवास करते हैं, उनको कोई भय या खतरा नहीं होता। यही बात नवकार महामंत्र के साथ संलग्न है। उसमें चित्त को स्थिर करने के लिए उसकी पृष्ठभूमि को दृढ़ बनाने का प्रयत्न करना आवश्यक है।१०८ नवकार मंत्र के गुणों को समझना, उनपर चिंतन करना तथा उन्हें जीवन में उतारने का अहर्निश प्रयत्न करना वांछित है। जप करने से पूर्व नवकार मंत्र की महिमा का बोध होना भी उपयोगी है। बोध होने पर मंत्र के प्रति श्रद्धा होती है। विश्वास में दृढ़ता आती है। किसी वस्त्र को किसी रंग से रंगने से पूर्व उसे भलीभांति धोकर स्वच्छ करना आवश्यक है। स्वच्छ होने पर ही उस पर दूसरा रंग चढ़ सकता है। उसी प्रकार नवकार मंत्र का आत्मा पर रंग चढ़ाने के लिए आंतरिक शुद्धि अपेक्षित है।०९ नवकार मंत्र के जप की साधना प्रारंभ करने से पूर्व साधक को ऐसे श्लोकों का, गाथाओं या स्तोत्रों का शुद्ध भावना पूर्वक शांत चित्त से पाठ या उच्चारण करना चाहिए। उनके भाव को समझना चाहिए तथा हृदय में स्थापित करना चाहिए । उदाहरण के लिए प्राकृत की कुछ महत्त्वपूर्ण गाथायें प्रस्तुत की जा रही है। ___ “धन्नोऽहं जेण मए अणोरपारम्मि भवसमुद्दाम्मि। पंचण्ह नमुक्कारों अचिंत - चिंतामणी पत्तो ।। १) साधकवृंद ऐसा चिंतन करे - मैं धन्य हूँ। मुझे पंचपरमेष्ठियों का नमस्कार मंत्र प्राप्त हुआ है, जो अनादि, अनंत संसार- सागर में एक ऐसा उत्तम चिंतामणि है, जिसकी विशेषताओं को हम सोच भी नहीं सकते अर्थात् जिसके गुणों का कोई पार नहीं है।११० "जिण सासणस्स सारो, चउदसपुव्वाण जो समुद्वारो। जस्स मणे नमुक्कारो, संसारे तस्स किं कुणइ।” २) नवकार मंत्र जिन शासन का सार है। यह चतुर्दश पूर्वो के ज्ञान से सम्यक् उद्धृत है। जिसके मन में नवकार स्थिर हो जाता है, संसार उसका क्या कर सकता है अर्थात् उसका संसार में कोई भी कुछ बिगाड़ नहीं सकता, हानि नहीं कर सकता।१११ (१०८)
SR No.002297
Book TitleJain Dharm ke Navkar Mantra me Namo Loe Savva Sahunam Is Pad ka Samikshatmak Samalochan Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorCharitrasheelashreeji
PublisherSanskrit Bhasha Vibhag
Publication Year2006
Total Pages350
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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