SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 138
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ । १) शब्दशक्ति - मंत्ररुप शब्दों की शक्ति, २) मन:शक्ति - मनका संकल्प, इच्छाशक्ति ३) भगवत् शक्ति - अनंत गुणों के धारक, अनंत शक्ति संपन्न, इष्टदेवता का स्मरण और उनके अनंत गुणों को चित्तमें साकार देखना ये तीनों शक्तियाँ एक साथ मिलती है। तभी मंत्रमें, जपमें, ध्यानमें इष्ट सिध्दि होती है। १०२ णमोक्कार मंत्र की शक्ति साक्षात् शुद्ध आत्मद्रव्य की शक्ति है। एक आत्म - द्रव्य की नहीं किंतु तीनों काल के सर्व अरिहन्त, सर्व सिद्ध भगवन्त, सर्व आचार्य, उपाध्याय और साधु भगवंतों की एकत्रित बनी हुई विराट आत्म शक्ति है। जिनके हृदय में पंच परमेष्ठियों के प्रति, णमोक्कार के प्रति गहरा आदर हो जाता है, उनके पुण्य-पाप के प्रश्न सुलझ जाते हैं। साधक के हृदय में ऐसी प्रक्रिया का निर्माण होता है, जो पुण्य का सर्जन एवं पाप का विसर्जन करती है। णमोक्कार मंत्र जो कुछ भी देता है, वह कभी कम नहीं होता, उत्तरोत्तर बढ़ता ही रहता है । पुण्य का छोटा सा कण, जो णमोक्कार ने दिया, वह अंततोगत्वा विराट् ज्योति बनकरही रहता है और साधक को मुक्ति के द्वार तक पहुँचा देता है ।१०३ मंत्र : ध्वनि - तरंग एवं प्रकाश मंत्र - जप प्रत्यक्षत: ध्वनि - तरंगात्मक है। यदि जप ध्वनि के अभ्यास में क्रमबद्धता, लयबद्धता और तालबद्धता हो तो एक गति चक्र बनता है। वह ध्वनिमय तरंग - युक्त होता है। यदि निरंतर जप-ध्वनि-मूलक शब्दोच्चारण हो तो देह के आकाश तत्व में घर्षण उत्पन्न होता है, जिससे प्रकाश का उद्भव होता है। जब तक वह प्रकाश विद्यमान रहता है, जप करनेवाले को असीम आनंद की अनुभूति होती रहती है। णमोकार मंत्र की ध्वनियों में ओज है, बल है, आत्मविश्वास है। बीजाक्षरों के रुपमें इसमें जो अग्नि-बीज निहित हैं, उनकी उर्जा / निश्चितरुपसे आत्मजागृति के लिए फलदायी है।१०४ ___ मंत्र-जपमें शब्दों के उच्चारण में, श्वासोच्छ्वास का आवागमन, एक लयबद्धता, एक तालबद्धता होती है। प्राणवायु की गति में भी विशिष्टता होती है, रक्त आंदोलित होता है। उससे शरीर में एक उष्मा उत्पन्न होती है। फलत: दिव्य - चेतना के केन्द्र उत्तेजित और जागरित होते हैं, घर्षण उत्पन्न होता है, जिससे प्रकाश तथा उष्णता का उद्भव होता है। ___ वहाँ धीरे - धीरे ध्वनि - तरंगे शब्द से अशब्द में चली जाती हैं। यह अजपा - जाप की अवस्था है। जब जप- ध्वनि बंद होती है, तब भीतर से स्वयं जप की एक आवाज अनवरत आती रहती है, सुनाई देने लगती है और मन के भीतर एक प्रकार का विलक्षण (१०६)
SR No.002297
Book TitleJain Dharm ke Navkar Mantra me Namo Loe Savva Sahunam Is Pad ka Samikshatmak Samalochan Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorCharitrasheelashreeji
PublisherSanskrit Bhasha Vibhag
Publication Year2006
Total Pages350
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy