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________________ उपास्य देव को याद करना, उनके नाम को रटना, जप करना, नाम - स्मरण कहा जाता है। कई उसको भगवत् - स्मरण या प्रभु - स्मरण भी कहते हैं। नाम - स्मरण सहज साधन हैं, क्योंकि वह बहुत सहजता से हो सकता है। अरिहंत, वीतराग, परमात्मा इन जिन सूचक शब्दों को मन द्वारा स्मरण किया जाये या मुखद्वारा बोला जाये तो क्या कष्ट होता है ? चाहे मनुष्य छोटा हो या बड़ा हो अथवा वह चाहे जिस स्थान में स्थित हो, चाहे जैसी अवस्था में विद्यमान हो तो भी उन नामों को बोल सकता है।९९ नमस्कार - मीमांसा में पूज्य श्री भद्रंकरविजयजी गणिवर मंत्र - चैतन्य के उन्मेष का विश्लेषण करते हुए लिखते हैं - आम्नाय का अनुसरण, विश्वास का बाहुल्य और ऐक्य का भावन - ये तीन मंत्र सिद्धि में सहकारी कारण हैं। शब्द, अर्थ और प्रत्यय का परस्पर संबंध है। शब्द से अर्थ की प्रतीति होती है अर्थात् दूर विद्यमान पदार्थ भी शब्द के बल द्वारा विकल्प के रुप में अथवा मानसिक आकृति के रुप में प्रतीत होता है, उपस्थित होता है। पद का पदार्थ के साथ वाच्य - वाचक संबंध है । पद के उच्चारण, स्मरण अथवा ध्यान द्वारा वाच्य पदार्थ की प्रतीति होती हैं। शब्दानुसंधान द्वारा अर्थानुसंधान एवं अनुसंधान द्वारा तत्वानुसंधान होता है। तत्वानुसंधान से स्वरुपानुसंधान होता है। १०० नवकार मंत्र में निर्विकल्प आस्था - जैन शासन में आज तक अनेक संप्रदाय बने, शाखा-प्रशाखाएँ निकलीं। उत्तरकालीन जैन साहित्य में पक्षापक्ष की झलक आई तथापि नमस्कार महामंत्र की निर्विकल्प आस्था पर कोई असर नहीं आया। हिन्दू धर्म में जो स्थान ‘गायत्री-मंत्र' का है और बौद्ध- संप्रदाय में जो स्थान 'त्रिशरण' का है, वही स्थान जैन शास्त्र में ‘णमोक्कार' महामंत्र का है। इस महामंत्र में किसी व्यक्ति विशेष को नमस्कार न करके संसारवर्ती सभी वीतराग तथा त्यागी आत्माओं को नमस्कार किया गया है। इस मंत्र में प्रयुक्त सभी आत्माएँ पवित्र जीवन की प्रतिमूर्तियाँ हैं। जो लोग इन निष्काम विभूतियों के स्वभाव से कुछ लौकिक अभिसिद्धियाँ पाना चाहते हैं, वे भूल करते हैं,क्योंकि कुछ मंत्र जहाँ कामना करने से आवश्यकतापूर्ति करते हैं, वहाँ यह मंत्र निष्काम भाव से जप करने वालों की मनोभावनाएँ पूर्ण करता है।१०१ नवकार मंत्र की तीन शक्तियाँ : मंत्र साधना, जपसाधना, या ध्यान साधनामें मुख्य रुपमें तीन शक्तियाँ काम करती है (१०५)
SR No.002297
Book TitleJain Dharm ke Navkar Mantra me Namo Loe Savva Sahunam Is Pad ka Samikshatmak Samalochan Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorCharitrasheelashreeji
PublisherSanskrit Bhasha Vibhag
Publication Year2006
Total Pages350
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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