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यह सारा जगत् तरंगों से आंदोलित है। विचारों की तरंगे, कर्म की तरंगे, भाषा की तरंगे, पूरे आकाश में व्याप्त हैं । व्यक्ति का मस्तिष्क और स्नायविक प्रणाली भी आंदोलित होती रहती है। इस स्थिति में मंत्र क्या है और उसके द्वारा क्या किया जा सकता है, यह भी सोचने का अवसर मिलता है ।
मंत्र एक प्रतिरोधात्मक शक्ति है। मंत्र एक कवच है । मंत्र एक प्रकार की चिकित्सा है । संसार में होनेवाले प्रकंपनों से बचने के लिए, उनके प्रभावों को कम करने के लिए प्रतिरोधात्मक शक्ति का विकास करें। मंत्र की भाषा में कवचीकरण का विकास करें । ८३
मंत्र की यह विशेषता है, वह केवल वर्तमान काल में ही लाभप्रद नहीं होता, उसका प्रभाव त्रैकालिक होता है। मंत्र सत्य है । सत्य त्रिकालवर्ती होता है। मंत्र की सत्ता सर्वोपरि है। उसका प्रभाव स्थायी होता है, किंतु यह दुःख का विषय है कि आजकल हमारी वर्तमान पीढ़ी के लोग मंत्रों की उपयोगिता और महत्त्व को स्वीकार नहीं करते, क्योंकि जब तत्काल फल नहीं होता तो उन्हें संशय होता है। मंत्र सच्चे गुरु से प्राप्त कर मूल ध्वनि के साथ सिद्ध करें तभी वह फलप्रद होता है। लोगों में ऐसा करने का धैर्य नहीं है । तब कैसे फल मिले | ८४
मंत्र शब्द की अनेक प्रकार से व्युत्पत्ति की जा सकती है जैसे -
“मन्यते - ज्ञायते आत्मादेशो ऽनेनेति मन्त्रः "
जिसके द्वारा आत्मा के आदेश या आत्मस्वरुप का ज्ञान होता है, वह मंत्र है । " मन्यन्ते - सत्क्रियन्ते परमपदे स्थिता आत्मानः,
यक्षादिशासन देवता वा अनेन इति मंत्र: "
परम पद में स्थित उच्च आत्मा अथवा यज्ञ आदि शासन देवताओं का जिसके द्वारा सत्कार किया जाता है, सम्मान किया जाता है, वह मंत्र है । ८५
इन व्युत्पत्तियों में मंत्र शब्द का अर्थ ज्ञापित किया गया है। तात्विक दृष्टि से नवकार मंत्र ही वह मंत्र है, जिसकी आराधना से समग्र दुष्कर्म और पाप नष्ट हो जाते हैं क्योंकि नवकार में वैसा करने की विलक्षण शक्ति है । ८६
त्रैलोक्य दीपक में मंत्र की तात्विक दृष्टि से व्याख्या करते हुए बतलाया गया है - मंत्र विशिष्ट मनन के साथ संबद्ध है । वह सम्यक् ज्ञान का हेतु बनता है । जब आत्मा में सम्यक् ज्ञान निष्ठित होता है, तब शुभ भावों का जागरण होता है। जीव अशुभ या पाप से बचता है। मंत्र जीव को अयोग्य मार्ग से पृथक् कर योग्य मार्ग पर गतिशील करता है ।
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