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________________ पंचमरमेष्ठी पद में देव, गुरू और धर्म ये तीनों शाश्वत तत्वों का इसमें उत्तम रुप से संयोजन किया गया है और उन तत्वोंकी सहाय से साधक सिद्ध पद प्राप्त कर सकता है। इन तीनों तत्वों को हम भलीभाँति समझने की, उसके मुताबिक हमारा जीवन जीने की प्रवृत्ति करें, यह नवकार मंत्र की सच्ची सफलता है। इसमें ही हमारे जीवन की धन्यता है । नवकार मंत्र सबका कल्याण करें यही मंगल भावना। भारतीय विद्या का क्षेत्र तथा मंत्रों का क्षेत्र बहुत विशाल है । इसमें ज्ञान- विज्ञान की विविध शाखाओं पर गहन, चिंतन, मनन, अनुशीलन और विश्लेषण हुआ है, वह वास्तव में विलक्षण है। भारतीय मनीषियोने जीवन के हर पक्ष को बहुत ही गहराई से, सूक्ष्मतासे देखा और परखा है। उनकी दृष्टि केवल बहिरंग ही नहीं रही, उन्होने सूक्ष्मतक अंतर्गत का संस्पर्श भी किया। भारतीय विद्या के अंतर्गत जैन विद्या का बहुत ही महत्त्वपूर्ण स्थान है। जैन मनीषि ज्ञान और चारित्र के परम आराधक थे। ज्ञान भी स्वाध्याय और चिंतन के रुप में साधना या चारित्र का अंग बन जाता है । जैन - विद्या और साधना के क्षेत्र में मंत्र -विद्या का भी बहुमुखी विकास हुआ। नवकार मंत्र के पदों की आराधनीको साथ भी मंत्रात्मक पद्धति को संलग्न किया गया है। आर्य देश में मंत्र-शान, विद्या-शास्त्र तत्वज्ञान के युग जितने ही प्राचीन है इसके समर्थन में जैन शाम्रोके अनुसार इस अवसीपर्णी काल में असंख्य वर्ष पूर्व हुए, प्रथम तीर्थंकर श्री ऋषभदेवद्वारा अपने प्रथम गणधर शिष्य श्री पुंडरीक स्वामी को दिया गया मंत्र प्रस्तुत किया जा सकता है, उसी प्रकार उन प्रभुद्वारा दी गई त्रिपदी के आधारपर श्री पुंडरिक साधु रचित द्वादशांगी के बारहवे अंग दृष्टिवाद के एक विभाग - दशवें पूर्व “विद्या प्रवाद” को भी विद्या और मंत्र की प्राचीनता का पूरक कहा जा सकता है। गहन चिंतन एवं आत्मानुभव पूर्वक सूक्ष्मतक शब्दों में निक्षिप्त रहस्यात्मक भाव, जिसके मननद्वारा ज्ञात हो सके वह मंत्र है। सिद्ध होने पर मंत्र वास्तवमें एक अक्षय कवचका काम देता है। जिस प्रकार योद्धाको कवच, उसपर होनेवाले आघातों से बचाता है, उसी प्रकार नवकार मंत्र अपने आराधक की सभी विघ्नों, संकटों और बाधाओं से रक्षा करता है। वह एक आध्यात्मिक कवच है। भारतीय विद्याओंमें मंत्रशास्त्र - भारतवर्ष एक ऐसा देश है, जिसमें प्राचीन काल से गहन चिंतन तथा मनन की परंपरा (९७)
SR No.002297
Book TitleJain Dharm ke Navkar Mantra me Namo Loe Savva Sahunam Is Pad ka Samikshatmak Samalochan Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorCharitrasheelashreeji
PublisherSanskrit Bhasha Vibhag
Publication Year2006
Total Pages350
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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