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________________ ... श्री नवकारमंत्र के प्रत्येक अक्षर के जाप से अज्ञान, कषाय और प्रमाद कम होते है, पुन: पुन: जाप करने से मन और बुद्धि, शुद्ध होती है। इस मंत्र के प्रत्येक अक्षरमें अचिंत्य शक्ति छिपी हुई है, परंतु यह प्रकाश क्रमश: प्रयत्न करने से प्राप्त होता है।७५ पंचपरमेष्ठिमें तीन तत्व: नमस्कार मंत्र को महामंत्र कहा गया है। इतनाही नहीं, जैन दर्शनमें इसे चौदह पूर्व का सार कहा गया है। इस मंत्रमें इसे विभूति या व्यक्ति विशेष की बात नहीं कही गई है , लेकिन विश्वके उत्तम गुण का इस मंत्रमें उल्लेख किया गया है और इस संसार के सभी जीवोंका गुण प्राप्ति के लिए पुरुषार्थ करने का आदर्श प्रगट किया है। साधक के जीवनसे दोष दूर हो और उत्तम मानवीय गुण की प्राप्ति हो ऐसी मंगल भावना नवकारमंत्रमें मिल सकतही है। नवकार मंत्र सांप्रदायिक मंत्र नहीं। इस मंत्र से जैनों का ही नहीं, संसार के सभी जीवों की मांगल्य और कल्याण की प्रार्थना की गई है। शक्ति जागृति का यह महामंत्र है। शब्द से अशब्दकी ओर, बहिर्मुख से अंतर्मुख की ओर ले जाने की क्षमता इस मंत्रके जाप से प्रगट होती है। सरलता नवकार मंत्र की सबसे बड़ी प्रधानता है। ज्ञानिओं ने इस मंत्र के प्रत्येक वर्ण पर अनेक विद्याओंका निवास होने की बात बताई है । नवकारमंत्रका प्रत्येक वर्ण साधक के कर्म निर्जराका उत्तम साधन बन सकता है। सारे विश्वका कल्याण मंत्र नवकार मंत्र नवकारमंत्रमें तीन तत्व निहीत होने की बात ज्ञानियोंने प्रगट की है। जैन दर्शन के मुताबिक देव, गुरु, और धर्म यह तीन तत्व शाश्वत तत्व है, परम मांगलिक है, आत्मा को परमात्मापद पर स्थापित करने की क्षमता नवकार मंत्रमें ही मिल सकती है। प्रारंभ के दो पद देव तत्वका, अविष्कार करता है। अरिहंत और सिद्ध ये दोनों जैनों के देव हैं। आचार्य, उपाध्याय और साधु ये तीन गुरु हैं। ७६ गुरु की कृपा और आशीर्वाद से किसी भी व्यक्ति को धर्म की यथार्थ समझ प्राप्त होती है और साधक अपने पुरुषार्थ से जप, तप, त्याग से धर्म का वास्तविक स्वरुप समझ सकता है। जैन दर्शन में यह भी दिखाया गया है कि - जब तक आत्मा की शुद्धि नहीं हो सकती है तब तक आत्म सिद्धि की कोई संभावना नहीं है। सिद्धि प्राप्त करने के लिए नवकार मंत्र महान उपकारक हो सकता है। “परम पदे तिष्ठति इति परमेष्ठी” 'इति परमात्मा' जो पदमें, रहता है, स्थित है, वह परमेष्ठी परमात्मा होता है।७७
SR No.002297
Book TitleJain Dharm ke Navkar Mantra me Namo Loe Savva Sahunam Is Pad ka Samikshatmak Samalochan Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorCharitrasheelashreeji
PublisherSanskrit Bhasha Vibhag
Publication Year2006
Total Pages350
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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