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________________ श्री नमस्कार महामंत्र पापरूपी पर्वत को भेदने के लिए वज्र के समान है, दुःखरूपी बादलों को बिबखेरने के लिए प्रचंड पवन के समान है, मोहरूपी दावानल को शांत करने के लिए आषाढ़ी मेघ समान है। अज्ञानरूपी अंधकार को दूर करने के लिए सूर्य के समान है। दारिद्र रूप कंद को मूल से उखाड़ने के लिए वराह की दाढ़ के समान है। सम्यक्त्व रत्न को पैदा करने के लिए रोहनाचल पर्वत के समान है, कल्पवृक्ष, चिंतामणी, कामधेनु, कामकुंभ आदि से भी विशेषरूप से अधिक सब कामनाओं को पूरी करनेवाला है। ___ मनुष्य सोने, जागते, बैठते, उठते या चलते फिरते श्री नवकार मंत्र को याद करते है, क्यों कि असमाधि और अशांति को शीघ्र दूर करनेके लिए अमोघ उपायरूप, परमपावन श्री नवकार मंत्र, उसके पद और उसके प्रत्येक अक्षर का अवलंबन लेने को ज्ञानिओने कहा है। शारीरिक तथा मानसिक दुखोंसे और राग-द्वेषादि संताप से तप्त चारों गति के भव्य जीवों के लिए श्री नवकार सर्वत्र सहायक और परमार्थ बंधुके समान है। श्री नवकार द्रव्य और भाव दोनों प्रकार के विष को दूर करनेवाला होने से गरूड आदि अन्य मंत्रोंमें प्रधान मंत्र श्री नवकार मंत्र अप्राप्त गुणोंको प्राप्त कराता है। ज्ञानादि प्राप्त गुणों का रक्षण कराता है और सर्व अर्थ का साधन होने से सब ध्येयोंमें परम ध्येय है। कर्ममलको दूर करनेवाला होनेसे सर्वतत्त्वों तथा परमार्थ भूत पदार्थोंमे अतिशय पवित्र तत्त्व है। ___ यदि साधक एकाग्र चित्तसे हाथकी अंगुलियाँ द्वारा श्री नवकार महामंत्र का जाप करें तो उसे भूत, प्रेत, पिशाच, आदि परेशान करनेमें कभी समर्थ नहीं होते । यह नवकार मंत्र जन्म के समय गिना चाए, तो जन्म के बाद बहुत ऋद्धि को देनेवाला है और मृत्यू के समय गिना जाए तो सेंकड़ो आपत्तियाँ दूर हो जाती है - मृत्यू मंगल बन जाती है। श्री नवकार महामंत्र का जाप करनेवाला संसारमें कभी दु:खी नहीं होता। इस जन्ममें विधि पूर्वक भाव और चित्त की एकाग्रता से जो व्यक्ति नवकार महामंत्र की आराधना करता है वह आत्मा भवांतर में उच्च जाति, कूल, रूप,आरोग्य, और संपत्ति प्राप्त करती है। यदि साधक श्रद्धा, भक्ति और एकाग्रता से - समर्पण भाव से श्री पंचपरमेष्टि की शरण जाता है तो उसकी बुद्धि, मन, वाणी तथा देह सब पवित्र बन जाते है। श्री नमस्कार महामंत्र को समझने के लिए केवल तर्क, युक्ति या बुद्धि पर्याप्त नहीं है । नवकार का घनिष्ट परिचय प्राप्त करने के लिए सर्व समर्पण की आवश्यकता है के इस मंत्र में पंचपरमेष्टि की अनुमोदना है। श्री पंचपरमेष्टि और उसके सुकृतो की अनुमोदना मोक्ष का द्वार खोल देती है। (९५)
SR No.002297
Book TitleJain Dharm ke Navkar Mantra me Namo Loe Savva Sahunam Is Pad ka Samikshatmak Samalochan Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorCharitrasheelashreeji
PublisherSanskrit Bhasha Vibhag
Publication Year2006
Total Pages350
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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