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________________ नवकारमंत्र में अलौकिक या लोकोत्तर शक्ति भरी पड़ी है । विषय, कषाय आदि विभाव भावों का नाश होकर आत्मिक गुणोंकी उन्नति वृद्धि नवकार मंत्र के स्मरण मात्र से होती है। नवकारमंत्र के चिंतन-मनन और ध्यान से प्रमोदभावना जागृत होती है । यह परम मांगलिक शांति प्रदान करता है । अनादि कालके मिथ्यात्व आदिभावोंको दूर करके सम्यक् भावोंमें लीन करने की शक्ति नवकार मंत्र में है । इस मंत्र की कोई बुरी असर होती ही नही है । यदि कोई आराधक दुष्ट उद्देश्य से भी इस नवकार मंत्र जाप करता है तो भी बहुत जल्दी उसका दुष्ट आशय दूर हो जाता है। ऐसा गुण प्रधान यह मंत्र है और नवकार मंत्र का चिंतन स्मरण आदि आराधक के उत्तम आत्मिक गुणों को प्रगट करता है । गुण पूजा का फल बहुत प्रभावशाली होता है । किसी भी एक पद से किसी एक परमेष्ठि को वंदन करने से अतीत, वर्तमान और अनागत तीन काल के परमेष्ठि को नमस्कार हो जाता है । एक पद से ही अनंता गुणी जनों को नमस्कार करनेकी सुविधा नमस्कार महामंत्र के प्रत्येक पद में हैं और इसका फल भी हमें अनंत मिलता है। इस प्रकार की विशेषता विश्व की किसी भी और मंत्र में नहीं है । नमस्कार महामंत्रको पंचपरमेष्टी मंत्र भी कहा जाता है। पंचपरमेष्टि का अर्थ यह है कि - संसारके अनंता अनंत आत्माओं में से आध्यात्मिक दृष्टि से दर्शाये गये पांच प्रकार की आत्मायें सबसे श्रेष्ठ है, सबसे महान है, सबसे उच्च दशा को प्राप्त कर चूके हैं। मानव आत्मा के विकासकी चरम सीमा इन पवित्र आत्माओं ने प्राप्त कर ली है। अरिहंत और सिद्ध पूर्ण रूप से रागादि से रहित और ज्ञान से परिपूर्ण है । राग और द्वेष से परे होने से अरिहंत और सिद्ध त्रिकाल वंदनीय है। आचार्य, उपाध्याय और साधु, वीतराग धर्म संपूर्ण पालन करते है वे मोक्षमार्ग आराधक है । संसार के किसी प्रकार के भोगोपभोग की जराभी तृष्णा नहीं रखतें; इसलिए इन तीनों को भी पंचपरमेष्टि मंत्र में बहुत आदरणीय स्थान दिया गया है - देव भी उनको वंदन नमस्कार करते है । ७२ पांच परमात्माओके उत्तम गुणोंका समन्वय नमस्कार महामंत्रमें हुआ है | इससे इस महामंत्र को पंचपरमेष्टि मंत्र भी कहा गया है। सारे विश्व के किसी और मंत्रमें इस प्रकार की पांच महान शक्तियों का समन्वय नहीं मिलता है और विश्व की उत्तम और मांगलिक शक्तियोंका एक साथ समन्वय मिलनेसे नवकार मंत्रका स्थान विश्वमें अजोड़ बन जाता है। आत्म उन्नति के सोपान परंपरायें इस मंत्र में आलेखित हुई है । भक्ति, ज्ञान और कर्म इन तीनों का संगम इस महामंत्र में हुआ है।७३ संसारके सभी जीवों की एकमात्र इच्छा आत्मस्वरूप प्राप्त करने की है -आत्मगुणों के विकास की है। जीवात्मा परमात्मा बने यह जैन दर्शन की शुभ भावना है। जैनधर्म की (९३)
SR No.002297
Book TitleJain Dharm ke Navkar Mantra me Namo Loe Savva Sahunam Is Pad ka Samikshatmak Samalochan Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorCharitrasheelashreeji
PublisherSanskrit Bhasha Vibhag
Publication Year2006
Total Pages350
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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