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________________ चौदह पूर्व का स्वाध्याय करने में असमर्थ बन जाते हैं, तब श्री नमस्कार महामंत्र की शरण स्वीकार कर अंतीम श्वास तक उसका स्वाध्याय करते रहते हैं, क्यों कि यह प्रभावक मंत्र भवांतर में उर्ध्व गति प्रदान करता हैं । ऐसा प्रभावक मंत्र श्रावक कूल में जन्मे हुए लोगोंको जन्म से ही मिल गया हैं, इसलिए कभी कभी ऐसा भी देखने को मिलता है कि - इस महामंत्र का यथार्थ मूल्य हम नहीं समझ सकते हैं। अत: उसकी सच्ची आराधना के लाभ से वंचित रह जाते है। ___ नमस्कार महामंत्र मंत्राधिराज हैं। सभी शास्त्रोंमें इसे प्रथम स्थान प्राप्त है । संसार रूपी रणक्षेत्रमें कर्मरूपी शत्रुओं के समक्ष लड़कर उन पर विजय प्राप्त करने का यह अमोघ अस्त्र है। नवकार मंत्र साधकोंको आत्मशत्रुओं पर विजय दिलाता है। इस महामंत्र की उत्तमताका पार नहीं है। देव, मनुष्य तिर्यंच एवं नारकी में उत्तम जीवों को इसकी प्राप्ति होती है। अयोग्य आत्मा के लिए यह मंत्र लाभप्रद नहीं होता। दुःखमय संसार से मुक्त होकर शाश्वत सुख प्राप्त करनेके लिए नमस्कार महामंत्र की, शरण लेना आवश्यक है। असार संसार में नमस्कार महामंत्र सार हैं परंतु इस सारभूत नवकार को साधने के हेतु अपनी पापात्मा पर तिरस्कार प्रगट होना चाहिए। नवकार के नवपदोमे और अडसढ अक्षरोंमे मनको गूंथ देना चाहिए। ऐसा कहा जाता है कि - अमृत सुवर्ण पात्र में ही रह सकता है - वैसे ही नवकार मंत्ररूपी अमृत, स्वर्णपात्र के समान उत्तम आत्मामें ही निवास कर सकता है। नवकार मंत्र के अक्षरों को जगतमें प्रकाश प्रदान करनेवाले रत्नज्योति के समान मानकर स्मरण करना चाहिए इस मंत्रमें स्थित पंचपरमेष्ठियों के स्वरूप को पहचानकर उनके गुणों को अपने स्वरूप के साथ तुलना करनी चाहिए। सर्व मंगलोंमें प्रथम मंगल, सर्वकल्याण का परम कारण देव, दानव और उत्तम पुरूषों को सदैव स्मरणीय नमस्कार महामंत्र यदि हमारे हृदय में सदैव रमण करता रहे, तो हम शीघ्र ही आत्मस्वरूप को पहचानकर उसे प्राप्त कर सकते है। शास्त्रकारोंने आदेश दिया है कि - संक्लेश, कष्ट, तथा चित्त की असमाधिके समय नवकारमंत्रको पुन: पुन: याद करना चाहिए असमाधि एवं अशांति को दूर करनेका शीघ्रगामी एवं अमोघ उपाय नमस्कार मंत्र है। इस मंत्र का विधिपूर्वक आश्रय लेनेवाले को अपूर्व शांति प्रदान करता है, अनंत कर्मोंका नाश करता है और अनंत सुखोंका भागी बनाता है । नमस्कार मंत्र शारीरिक बल, मानसिक बुद्धि, आर्थिक वैभव, राजकीय सत्ता, ऐहिक संपत्ति तथा दूसरे भी अनेक प्रकार के ऐश्वर्य प्रभाव एवं उन्नति को प्रदान करता है, क्यों कि वह (९०)
SR No.002297
Book TitleJain Dharm ke Navkar Mantra me Namo Loe Savva Sahunam Is Pad ka Samikshatmak Samalochan Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorCharitrasheelashreeji
PublisherSanskrit Bhasha Vibhag
Publication Year2006
Total Pages350
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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