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________________ झुकना ही विनय कहा गया है। विनय हमारे समग्र धर्माचरणों की नींव है। विनयहीन धर्म वास्तवमें धर्म ही नही है। विनय जिनशासन का मूल है । तप-जप, ज्ञान-ध्यान, संयम और धर्म की आराधना विनयशील ही कर सकता है और नवकार मंत्र के स्मरण से अहम् का नाश होता है और विनय गुणकी वृद्धि होती है। सर्व कल्याणों का आधारभूत विनय को माना गया है। . आत्मशोधन का हेतू यह मंत्र जाप है । नमस्कार मंत्र सद्बुद्धि, सद्विचार और सत्कर्मो की परंपरा का सर्जन करता है। पवित्र, अपवित्र, रोगी, दु:खी आदि किसी भी अवस्थामें इस मंत्र का जप करने से व्यक्ति बाह्य और आभ्यंतर दोनों दृष्टियोंसे पवित्र हो जाता है। ऐहिक और पारलौकिक दृष्टि से कल्याणकारी यह मंत्र आभ्यंतर तपका प्रथम मांगलिक सोपान है।५८ नामस्मरण भक्ति, आराधना, या उपासना का प्रथम अंग नामस्मरण है। उपास्य देवको याद करना, उपास्य देवका नाम लेना, नामका स्मरण करना, उसका जप करना उसे नामस्मरण कहते हैं। उसे प्रभु स्मरण भी कहते हैं। कारण उसमें प्रभु के नामका स्मरण होता है। नामस्मरण यह सहज साधन है, याने वह बहुत आसानीसे हो सकता है। हे अरिहंत, हे वीतराग , हे परमात्मा यह जिन नाम सूचक शब्द मन में स्मरणकरने से अथवा मुख से बोलने से कोई तकलीफ नहीं पड़ती। फिर वह मनुष्य छोटा हो या बड़ा हो, किसीभी स्थान में रहता हो, किसीभी अवस्थामें रहता हो तो भी यह नामस्मरण कर सकता है। एक अहोरातमें सौ-दोसो बार प्रभु का नामस्मरण करना जरा भी कठीण नहीं है। __ जैन परंपरा ऐसी है कि - बच्चा थोड़ा बड़ा होते ही उसे नवकार मंत्र सीखाया जाता है, जिससे वह बच्चा उठते, बैठते, सोते, जागते, नवकार मंत्र का स्मरण करके अपने जीवन को सफल बना सकता है।५९ किसी संत महात्माने कहा है कि - नामस्मरण सच्चे हृदय से, सच्ची श्रद्धा से करोगे तो मन में किसीभी प्रकार का शोक संताप नहीं होगा और सभी प्रकार की मुसीबत दूर होगी। कबीरदासजी ने भी नामस्मरण के बारे में कहा है कि - “सुमिरन से सुख होत है, सुमिरन से दुःख जाए । कहे कबीर सुमिरन किये, साई मांहि समाय ॥"
SR No.002297
Book TitleJain Dharm ke Navkar Mantra me Namo Loe Savva Sahunam Is Pad ka Samikshatmak Samalochan Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorCharitrasheelashreeji
PublisherSanskrit Bhasha Vibhag
Publication Year2006
Total Pages350
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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