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... शोध हेतु परिगृहित विषय का एक प्रकार से यह बीज प्रकरण है। बीज से अंकुरित, पल्लवित, परिविर्धित होते पादप की तरह आगे मैं प्रकरण इसी का विस्तार हैं, जिनमें अंततः अनुसंधेय विषय का परिसमापन होता है।
आगे मंत्रविद्या की परंपरा, मंत्र जप की उपयोगिता, नवकार मंत्र की उत्पत्ति, माहात्म्य, उसमें सन्निहित - उत्कृष्ट शक्ति, निर्वेद का निर्मल स्रोत, आत्मा के ज्ञातृत्व भाव की प्रेरणा आदि विविध विषयों पर सामान्यत: प्रकाश डालने का प्रयत्न रहेगा।
नवकार की जपाराधना, उसके विविध प्रकार के विधि-विधान, नवकार के आराधक की भूमिका, आचार, कर्तव्य इत्यादि की भी साधारणत: इसमें चर्चा की जायेगी।
जैन धर्म में गुण और गुणीपूजाका महत्त्व :
जैन धर्म व्यक्तिनिष्ठ नहीं है। किसी व्यक्ति विशेष की पूजा और प्रतिष्ठा में विश्वास नहीं करता। वहाँ गुणों और गुणियों की पूजा का सर्वाधिक महत्त्व है। चाहे मनुष्य किसी जाति, वर्ग या समुदाय का हो, यदि वह आत्म पराक्रम, श्रम एवं उद्यम द्वारा उच्च - उत्कृष्ट गुणों का अर्जन कर लेता है तो वह सबके लिए पूजनीय और सन्मानीय बन जाता है।
जैन धर्म की उदारता, व्यापकता और सार्वजनीनता का यह सबसे बड़ा साक्ष्य है। यहाँ महान वह होता है, जो गुणों में महान होता है। कुल, पद और वैभव की महत्ता का यहाँ महत्त्व नहीं है।५३ -
नवकार महामंत्र का आधार : गुणनिष्पन्नता
नवकार महामंत्र जैन धर्म का सर्वोत्तम मंत्र है । इसके पांच पदोंमे जैन दर्शनका समग्र रहस्य भरा हुआ है। इसमें नमनीयता के रूपमें किसी व्यक्ति विशेष का उल्लेख नहीं है।
अरिहंत, सिद्ध, आचार्य, उपाध्याय एवं साधु ये पांचो पद सर्वथा गुण निष्पन्नता पर अवलंबित हैं। इनमें एक एक पदकी गुणों की दृष्टि से बड़ी गरिमा हैं। इसलिए वे आदरणीय, सन्मानीय, पूजनीय और वंदनीय हैं। इन्हें पंच परमेष्ठी कहा जाता है।
नमस्कार महामंत्र गुण पूजा का एक अद्भुत उदाहरण है। इसका प्रत्येक पद वंदन एवं नमन करनेवालों को यह प्रेरणा देता है कि - वे भी इन पदोंको प्राप्त करने की दिशामें समुद्यत
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