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________________ नमस्कार मंत्र प्राणियों के लिए द्रव्य - मंगल और भाव-मंगल दोनों ही दृष्टिसे हितप्रद हैं। सांसारिक दृष्टि से उत्तम मांगलिक स्थितियों का यह हेतु है तथा आध्यात्मिक दृष्टि से यह अहिंसा, संयम, तप, स्वाध्याय आदि अशुभ भावों का हेतु है। दोनों दृष्टियों से यह अत्यंत हितकर है। इसलिए जो इसकी आराधना करता है, उसे किसी भी प्रकार का संकट उपद्रव या दुःख नहीं होता, भावपूर्वक पंच परमेष्ठियों का जो भव्य जीव स्मरण करता है, उसके विचारों और परिणामों की धारा निर्मल बनती है। । संक्षेप में कहा जाये तो पंच-परमेष्ठियों के स्मरण से आत्मशुद्धि होती है। आत्मशुद्धि का परिणाम मुक्ति, मोक्ष या निर्वाण है। नवकार मंत्र का स्मरण, जप तथा आराधन साधक को अनंत सुखमय, शांतिमय, अंतिम लक्ष्य तक पहुंचा देते हैं। प्रथम प्रकरण का प्रारंभ मानव जीवन में अध्यात्म एवं धर्म की भूमिका से होता है, जिसमें यह बतलाया गया है कि भौतिक सुखो और उपलब्धियों से मानव को सच्ची शांति प्राप्त नहीं होती। इसलिए उसकी मनोवृत्ति अध्यात्म एवं धर्म की दिशा में प्रवृत्त होती है। उसके मन में यह आशा उत्पन्न होती है, विश्वास दृढ़ होता है कि धर्म की आराधना द्वारा ही उसे शाश्वत सुख एवं शांति प्राप्त हो सकती है। यह मानव की अति चिरकालीन अंतर भावना का सृजन है। भारतीय संस्कृति में आध्यात्मिक भाव विशेष रूप से विकसित और समुन्नत हुआ। ऐहिक जीवन के परिष्कार के साथ-साथ पारलौकिक उन्नति की दिशा में भारतीय मनीषी सतत् जागृत रहे हैं। यह यहाँ की संस्कृति की अद्भुत विशेषता है। भारतीय संस्कृति का स्रोत बहुत ही व्यापक और विस्तीर्ण रहा है। उसमें समन्वय का बड़ा उदात्तभाव रहा है। वह वैदिक, बौद्ध और जैन - तीन धाराओं की त्रिवेणी के रूप में सतत् प्रवहणशील रही। वैदिक धर्म, बौद्ध धर्म एवं जैन धर्म उसी के सैद्धांतिक और साधनामूलक जीवनपथ हैं । इन विषयों का परिचय कराते हुए यहाँ जैन धर्म के इतिहास, परंपरा, उसकी सार्वजनीनता आदिपर प्रकाश डाला गया है। नवकार जैन धर्म का महामंत्र है। उसके बाह्य तथा आंतरिक स्वरूप, उसकी आध्यात्मिक संपदाएँ, अक्षरात्मक विश्लेषण आदि पर सार रूप में इसमे विवेचन किया गया है। नवकार में नमस्कृत पंचपरमेष्ठी - अरिहंत, सिद्ध, प्राचार्य, उपाध्याय, तथा साधु पद विचार करते हुए शोध के मूल विषय “नमो लोए सव्व साहुणं” का संस्पर्श तथा तद्गत रहस्य को उद्घाटित करने का प्रयत्न किया गया है। (८२)
SR No.002297
Book TitleJain Dharm ke Navkar Mantra me Namo Loe Savva Sahunam Is Pad ka Samikshatmak Samalochan Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorCharitrasheelashreeji
PublisherSanskrit Bhasha Vibhag
Publication Year2006
Total Pages350
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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