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________________ पंचपरमेष्टिमंत्रका अथवा परमेष्ठीमंत्रके अंशका मुख्य कारण समझना चाहिए। कर्मबंधन से मुक्त होने में यही मंत्र सहायक समझना चाहिए।३७ आचार्य : __तीसरे पद में आचार्यो को नमन किया गया है जो साधु-साध्वी रूप धर्मसंघ को अनुशासित और संचालित करते है । वे स्वयं आचार का पालन करते है, तथा साधुसाध्वियों से पालन करवाते है, उन्हें पालन करने की प्रेरणा देते हैं। आगम सूत्रों का उन्हें अर्थज्ञान करवाते हैं। वे आचार्य कहलाते हैं। वे धर्म संघ के प्रमुख आधार होते हैं वे अरिहंतो के प्रतिनिधि कहे जाते है, अरिहंतो ने जो धर्म का उपदेश दिया, उसे वे अपने समय में जन-जन तक पहुँचाने का महान् कार्य करते है।३८ आचार्य पद आचार, ज्ञान, अनुशासन और व्यवस्था के साथ जुड़ा हुआ है। कहा है - जैन शासन में ऐसी परंपरा है कि आगमों के पाठ की वाचना उपाध्याय देते हैं। आचार्य अर्थ-वाचना देते हैं। वे आगमों के रहस्यों के ज्ञाता होते हैं, विशषज्ञ होते हैं। संघ के साधुसाध्वियों को आगमों का अर्थ प्राप्त कराते हैं। ३९ आचार्य, गच्छ के नायक होते है । वे संघ के साधुओं की सार-संभाल रखते हैं। तीर्थंकर देव के अत्यंत उत्तम, कारूण्यपूर्ण धर्मशासन की उन्नति के लिए वे प्रयत्नशील रहते वे पाँचों इन्द्रियों के विषयों पर नियंत्रण रखते है। क्रोध, मान, माया, लोभ रूप कषायों से विमुक्त होते हैं। पाँच महाव्रत, पंचाचार, पाँच समिति सर्व तीन गुप्ति से युक्त होते है। आचार के उत्कृष्ट परिपालक होते है। उपाध्याय - उपाध्याय शब्द की व्युत्पत्ति करते हुए विद्वानों ने लिखा है। “उप-समीपे अधिवसनात् श्रुतस्य आयो लाभो भवति येभ्यस्ते उपाध्यायाः" चौथे पद में उपाध्यायों को नमस्कार किया गया है। उपाध्याय पद का शिक्षण से संबंध है। वे साधु, साध्वी, समुदाय को आगम-सूत्रों की वाचना देते हैं। आगामों का शुद्ध पाठ करना सिखलाते है। आगमों के पाठों के उच्चारण की शुद्धता पर बहुत जोर दिया जाता है। उपाध्याय की एक स्वतंत्र पद के रूप में स्थापना इसका सूचक हैं।४० उपाध्याय शिक्षण या अध्यापन से संबंधित है। साधु-साध्वियों के लिए आगम सूत्रों का अध्ययन आवश्यक हैं, क्योंकि उनमें तत्वज्ञान और आचार के सिद्धांतो का विस्तृत वर्णन हैं।४१ प्रत्येक साधु-साध्वी को यथायोग्य आगमों का ज्ञान होना चाहिए। भारतवर्ष में (७७)
SR No.002297
Book TitleJain Dharm ke Navkar Mantra me Namo Loe Savva Sahunam Is Pad ka Samikshatmak Samalochan Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorCharitrasheelashreeji
PublisherSanskrit Bhasha Vibhag
Publication Year2006
Total Pages350
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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