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आकाश के तारों को साधारण मनुष्य गिन नहीं सकते, उसी प्रकार तीर्थंकरों के अनंत गुण अगम्य है।
अरिहंत साकार या सशरीर परमात्मा है । सिद्ध निराकार या अशरीरी परमात्मा है, क्यों कि समस्त कर्मों के क्षीण हो जाने पर शरीर का भी अस्तित्व नहीं रहता । आराधक की आराधना या उपासना का क्रम ऐसा है कि पहले साकार या सशरीर की उपासना की जाती है । वैसा करना अपेक्षाकृत सरल है । उसके पश्चात् निराकार की उपासना की जाती है । साकार परमात्मा या तीर्थंकर ही निराकार परमात्मा का या सिद्धों का बोध कराते हैं । ३२
सिद्ध
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दूसरे पद में सिद्धों को नमस्कार किया गया है, जो ज्ञानावरणीय, दर्शनावरणीय, वेदनीय, मोहनीय, आयुष्य, नाम, गोत्र और अन्तराय इन आठ कर्मों का क्षय कर देते है, मानसिक, वाचिक एवं कायिक योगों से सर्वथा रहित हो जाते है, अयोगावस्था प्राप्त कर लेते है, वे सिद्ध कहे जाते हैं उन्हें मुक्त, परिनिवृत्त भी कहा जाता । मोक्ष या परिनिर्वाण समानार्थक है ।३३
जो ज्यों भव्य, जीव उत्कृष्ट भाव से नित्य सिद्ध भगवान की स्तुति करता है, वह भविष्य में अवश्य सिद्ध होता है । इसलिए मैं अपने मन-वचन काया द्वारा अनंत सिद्ध भगवान वीतराग महासत्ताको नमस्कार करता हूँ । ३
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सिद्ध शब्द जीवन की अंतिम सफलता या सिद्धी का सूचक है । ३५ इसी पद या स्थान को प्राप्त करने हेतु सभी साधक, भक्त या उपासक सदैव प्रयत्न करते हैं । सिद्ध सर्वोच्च पद है । इसलिए उनका स्थान लोक में सर्वोच्च या लोग अग्रभाग में माना गया है । अतीतकाल में अनेक सिद्ध हो चुके हैं। वर्तमान में भी होते हैं और भविष्य में होते रहेंगे । जब आत्मा के गुणों एवं विशेषताओं को रोकने वाले कर्मो का पूर्णतया नाश हो जाता है, तो अनंत ज्ञान एवं अनंत दर्शन उत्पन्न होता है । जिसमें कोई भी बाधा नहीं होती, ऐसा अनंत सुख प्राप्त होता है । अनंत चारित्र, अक्षय स्थिति, अमूर्तत्व, अगुरुलघुत्व तथा अनंत वीर्य - शक्ति प्रादुर्भूत होती है । ऐसा माना जाता है कि सिद्धों की आत्मा में इतनी शक्ति होती है कि, वे सारे लोक को हिला सकते है, किंतु वे इस शक्ति का कभी उपयोग करने की आवश्यकता नही समझते ।
Prastractions to those supreme souls who are liberated from the bond the bondage of this perishable physical body." ३६
जितने जीव मोक्ष में गये है और जाएँगे, अर्थात् कर्म से मुक्त हुए है, उनके निमित्त
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