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नवकार के आदि में प्रयुक्त णमो पद में ओम भी व्याप्त है । नमो पद में न+अ + म् + ओ ये चार वर्ण है । यदि इन वर्गों को व्यतिक्रम से रखा जाये, उल्टा रखा जाये तो ओ + म् + अ + न् ऐसा होता है। इनमें पहले दो अक्षरों के संयोजन से ओम् बन जाता है ।
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संस्कृत के मन:पद के म और न अक्षरों को यदि उल्टा किया जाये तो नमः पद बनता है। इसका अभिप्राय यह है कि इससे मन अंतर्मुखी बनता है अर्थात् बाह्य जगत् की ओर न दौड़कर वह आत्मोन्मुख होता है । तब नमः या नमो पद का सार्थक्य होता है।
नवकार मंत्र और चूलिका में नमो पद का छह बार प्रयोग हुआ है । इसको छह बार स्मरण कराया है। इस नमो पद में अनेक गंभीर भाव निक्षिप्त हैं । जैसे विशुद्ध मन का नियोग - उपयोग, मन का विशुद्ध प्रणिधान, मन की विषय कषायों से निवृत्ति अथवा सांसारिक भावों में परिभ्रमण का अवरोध ।
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नमो पद श्रद्धा, भक्ति, आंतरिक बहुमान और सम्मान का सूचक है । यह सर्वसमर्पण भाव का द्योतक है। इस पद में पंच परमेष्ठियों के प्रति प्रमोद भाव है। प्रमोद भाव यह अनुमोदन मूलक बीज है जिससे सर्व - समर्पण का विशाल वृक्ष फलता-फूलता है । नवकार मंत्र के साथ जैसे प्रमोद - भाव का संबंध है, उसी प्रकार समर्पण भाव का भी सह संबंध है । जब पँच-परमेष्ठी भगवंतों के प्रति बिना किसी आकांक्षा या स्वार्थ के समर्पण भाव प्रस्फुटित होता है, तब अपने में व्याप्त दुर्भाव मिटते हैं तथा आत्मचेतना सिद्धत्व की दिशा में ऊर्ध्वमुखी होती है। नीचे की ओर जाने वाले भाव - प्रवाह को ऊपर की ओर ले जाने की पंच परमेष्ठियों में बहुत बड़ी शक्ति है, किंतु इस शक्ति को उद्भावित करने में नमो पद मुख्य कारण है ।
नमस्कार मंत्र पंच परमेष्ठियों की अनुमोदना का पद है, जो त्रैकालिक सर्वोत्तम महाविभूतियों को प्रगट करने की कुंचि ( चाबी ) हैं । नमो पद द्वारा साधक का पंच परमेष्ठियों के साथ संबंध स्थापित होता है । अनुमोदना नमस्कार की प्राथमिक भूमिका है तथा सर्व- समर्पण - भाव उसकी पराकाष्ठा है । नमो पद में अचिंत्य सामर्थ्य है | इसका स्मरण करने से इससे-अनुभावित होने से आराधना के अंतिम लक्ष्य तक पहुँचा जा सकता है
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पंच परमेष्ठियों का अत्याधिक महत्त्व है, किंतु इस महत्त्व का लाभ प्राप्त कराने की क्षमता नमो पद में हैं।
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