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हल् - क से लेकर ह तक व्यंजन बीज कहलाते हैं तथा स्वर शक्ति कहलाते हैं। बीज और शक्ति के संयोग में मंत्रों की निष्पत्ति होती है ।२१
नवकार मंत्र ६८ मातृका वर्णों से निष्पन्न होता है, जो निम्नांकित है - णमो अरिहंताणं ण्, अ, म्, ओ
__ = णमो = ४ अक्षर = अ, र, इ, ह, अं, त्, आ, ण, अं = ९ अक्षर, अरिहंताणं णमो सिद्धाणं
ण, अ, म्, ओ = णमो = ४ अक्षर स्, इ, द्, ध्, आ, ण, अं, = ७ अक्षर, सिद्धाणं णमो आयरियाणं ण्, अ, म, ओ = णमो = ४ अक्षर
आ, इ, र, इ, य, आ, ण, अं = ८ अक्षर, आयरियाणं णमो उवज्झायाणं
ण्, अ, म्, ओ = णमो = ४ अक्षर उ, व्, अ, ज्, झ्, आ, य, आ, ण, अं = १० अक्षर, उवज्झायाणं णमो लोए सव्व साहूणं ण्, अ, म्, ओ, = णमो = ४ अक्षर
, ओ, ए, स्, अ, वू, व्, अ, स्, आ, ह्, ऊ, ण, अं = १४ अक्षर, लोए सव्व साहूणं ___ अक्षरों की गिनती में संयुक्ताक्षर को एक ही गिना जाता है। उसे गुरु माना जाता है। बाकी के हस्व, दीर्घ, स्वरों तथा हस्व, दीर्घ स्वर युक्त व्यंजनों को लघु माना जाता है। यह एक विशेष मान्यता है। नवकार मंत्र में अडसठ अक्षर है।
संस्कृत में, छंदों में हस्व स्वरों तथा हस्व स्वरयुक्त व्यंजनों को लघु एवं दीर्घ स्वरों और दीर्घ स्वर व्यंजनों को गुरु माना जाता है। संयुक्ताक्षर के पूर्व के वर्ण को अनुस्वार युक्त एवं विसर्ग युक्त वर्ण को गुरु माना जाता है।
यहाँ लघु गुरु के संदर्भ में यह मान्यता स्वीकृत नहीं है।
नवकार के प्रथम पद ‘णमो अरिहंताणं' में सात अक्षर हैं। वे पूर्वोक्त मान्यता के अनुसार सातों ही लघु हैं। २२
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