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________________ णमो अरिहंताणं, णमो सिद्धाणं, णमो आयरियाणं, णमो उवज्झायाणं, णमो लोए सव्व साहूणं, एसो पंच णमुक्कारो, सव्व पावप्पणासणो, मंगला णं च सव्वेसिं, पढमं हवइ मंगलं ॥ १८ नवकार की सम्पदाएँ - अर्थ के विश्राम - स्थान को सम्पदा कहा जाता है। "सांगत्येन पद्यते - परिच्छिद्यतेऽर्थो याभिस्ताः संपदः” जिनके द्वारा अर्थ भलीभाँति समझ में आ जाता है, उन्हें सम्पदाएँ कहा जाता है | नवकार की आठ सम्पदाएँ मानी गयी है । पहले से सातवें पद तक की सात सम्पदाएँ हैं तथा आठवें और नौंवें पद की एक संपदा है। इस प्रकार कुल मिलाकर आठ संपदाएँ होती हैं । १९ नवकार मंत्र का अक्षरात्मक विश्लेषण 'न क्षरति इति अक्षरम् ' - जिसका क्षय नहीं होता, विभाग नहीं होता या जो अपने आप में स्वतंत्र ध्वन्यात्मक रुप लिये होता है, उसे अक्षर कहा जाता है । स्वर एवं व्यंजन के रुप में अक्षर के दो भेद हैं। कहा गया है. - - अकार से लेकर क्षकार पर्यन्त अक्षर मातृका वर्ण कहलाते हैं। सृष्टिक्रम, स्थितिक्रम तथा संहारक्रम के रुप में उनका तीन प्रकार का क्रम है। नवकार मंत्र में मातृका ध्वनियों का तीनों प्रकार का क्रम सन्निविष्ट है । यही कारण है कि यह मंत्र आत्म - कल्याण के साथ लौकिक अभ्युदय भी उत्पन्न करता है। सृष्टिक्रम और स्थितिक्रम आत्मानुभूति के साथ लौकिक अभ्युदयों को प्राप्त कराने में भी सहायक होते हैं। संहारक्रम २० से अष्ट क्रमों के विनाश की भूमिका उत्पन्न की जा सकती है । (७०)
SR No.002297
Book TitleJain Dharm ke Navkar Mantra me Namo Loe Savva Sahunam Is Pad ka Samikshatmak Samalochan Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorCharitrasheelashreeji
PublisherSanskrit Bhasha Vibhag
Publication Year2006
Total Pages350
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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