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________________ जो श्रुत प्रेमी है, अबुध को पंडित बनानेवाले हैं उन्हें उपाध्याय कहते हैं। नमो लोए सव्व साहूणं ॥५॥ इन लोक (दुनिया - विश्व) में जितने साधु हैं उन सबको मेरा नमस्कार हो । परंतु जो साधु, अहिंसा, सत्य, अचौर्य, ब्रह्मचर्य और अपरिग्रह का पालन करते हो, उन्हें साधु कहते एसो पंच नमुक्कारो॥ ___ इन पाँचों को (अरिहंत - सिद्ध - आचार्य - उपाध्याय और साधुओं को) किया गया नमस्कार। सव्व पाव पणा सणो - सभी पापों का नाश करता है। मंगलाणं च सव्वे सिं - सभी मंगलमों मे यह नमस्कार महामंत्र पढ़मं हवई मंगलं - प्रथम अर्थात् सर्व श्रेष्ठ मंगलोंमें महामंगल है।१६ 208 नवकार मंत्र का बाह्य स्वरुप - किसी भी क्रिया का, पूरा फल तभी प्राप्त होता है जब उसे विधि के साथ किया जाये । किसी भी मंत्र की आराधना तभी सिद्धि प्रदान करती है, जब उसका जप स्मरण ध्यान तथा विधि किया जाये । एक किसान यदि विधिपूर्वक भूमि को स्वच्छ कर बीज-वपन करता है, तभी धान्य की फसल प्राप्त करता है। विधि सहित क्रिया करने हेतु उस पदार्थ, वस्तु या कार्य का ज्ञान अति आवश्यक है। नवकार मंत्र के विधिवत् जप करने हेतु उसके स्वरुप को जानना अपेक्षित है। नवकार के बाह्य एवं आंतरिक दो स्वरुप है। ___ बाह्यस्वरुप का तात्पर्य मंत्र के अक्षरात्मक देह से हैं। ५७ नवकार मंत्र में चूलिका सहित नौ पद हैं। आठ सम्पदाएँ हैं और ६८ अक्षर है । इन ६८ अक्षरों में सात संयुक्त अक्षर हैं और १६१ पृथक् पृथक् अक्षर हैं। नौं पदों की दृष्टि से नवकार एवं चूलिका का स्वरुप इस प्रकार है। (६९)
SR No.002297
Book TitleJain Dharm ke Navkar Mantra me Namo Loe Savva Sahunam Is Pad ka Samikshatmak Samalochan Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorCharitrasheelashreeji
PublisherSanskrit Bhasha Vibhag
Publication Year2006
Total Pages350
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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