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समाधिमरण या सल्लेखना
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अर्थ ही विशेषप्रकार की धूमधाम समझते हैं और इस प्रसंग को भी वही रूप देना चाहते हैं। उन्हें तो कुछ भी हो, नाचना गाना है, जुलूस निकालना है।
दीपावली पर भगवान का वियोग हुआ था, सभी जानते हैं; पर जिनको खुशियाँ मनानी हैं, पटाके छोड़ना है, लड्डू खाने हैं; वे तो खुशियाँ मनायेंगे ही, पटाके छोड़ेंगे ही, लड्डू खायेंगे ही। कौन समझाये उन्हें?
समाधिमरण और सल्लेखना एकदम व्यक्तिगत चीज है। इसे सामाजिक रूप देना, प्रभावना के नाम पर इसका प्रदर्शन करना, प्रचारप्रसार करना उचित नहीं है ।
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पत्रकारों को बुलाना, रोजाना स्वास्थ्य बुलेटिन निकालना, साधक को जांच यंत्रों में लपेट देना, इन्टरव्यू लेना - ये सबकुछ ठीक नहीं है; अतिशीघ्र इस भव को छोड़ देने की तैयारी करने वालों को इन सबसे क्या प्रयोजन है?
आप कह सकते हैं कि ऐसा करने से धर्म की प्रभावना होती है। प्रभावना तो नहीं होती, बल्कि ऐसा वातावरण बनता है कि लोग कहने लगते हैं कि यह तो आत्महत्या है। सरकार भी दबाव बनाने लगती है । यदि कोर्ट ने कुछ कह दिया तो अपने को धर्म संकट खड़ा हो जाता है ।
हमारा जीवन हमारा जीवन है। इसमें किसी का हस्तक्षेप नहीं है, नहीं होना चाहिये। यदि हम शान्ति से चुपचाप कुछ करें तो हमें कोई कुछ नहीं कहता। पर जब हम अपनी किसी क्रिया को, कार्य को; भुनाने की कोशिश करते हैं; तब हजारों झँझटें खड़ी हो जाती हैं।
सल्लेखनापूर्वक मरण चुनना हमारा मूलभूत अधिकार है ।
आप कह सकते हैं कि जीना आपका जन्मसिद्ध अधिकार है, मरना नहीं ।