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________________ आगम के आलोक में - ___सल्लेखना में हम मरण के लिये प्रयास नहीं करते; अपितु अंतिम साँस तक जीने का ही प्रयास करते हैं; किन्तु जब मरण अनिवार्य हो जाता है, तब क्या हम शान्ति से मर नहीं सकते? शान्ति से जीना और शान्ति से मरना हमारा दायित्व है; जिसे हम समताभावपूर्वक निभाते हैं। इस बात को हम अनेक बार स्पष्ट कर आये हैं कि जब मृत्यु एकदम अनिवार्य हो जावे, बचने का कोई उपाय शेष न रहे, तभी सल्लेखना ग्रहण करें। यद्यपि यह सत्य है कि हमारी अंतरंग क्रियाओं से किसी को कुछ भी लेना-देना नहीं है; तथापि यह भी सत्य ही है कि हमारे आडम्बर किसी को स्वीकार नहीं होते। अतः आडम्बरों से बचना हमारा परम कर्तव्य है। ___ सम्पूर्ण समाज से हमारा विनम्र निवेदन है कि प्रभावना के नाम पर ऐसी परिस्थितियाँ पैदा न करें; जिससे किसी को हमारे धर्म में हस्तक्षेप करने का मौका मिले। जिन्होंने इसे महोत्सव कहा है। उन्होंने भी महान मुनिराजों पर आये संकटों की, उपसर्गों की चर्चा करके संकटग्रस्त संल्लेखनाधारियों को ढाँढ़स बंधाया है । अतः वहाँ उत्सव जैसी कोई बात नहीं है।' ___ अखिल बंसल - कोर्ट के इस फैसले से समाज जागृत हो गया है, सतर्क हो गया है; उसमें अभूतपूर्व एकता हो गई है। आज इस मामले में सभी दिगम्बर, श्वेताम्बर, स्थानकवासी, तेरापंथी एक जाजम पर आ गये हैं, एक साथ खड़े हो गये हैं। डॉ. भारिल्ल - अच्छी बात है। ऐसे समय पर एक नहीं होंगे तो कब होंगे? १. आगम के आलोक में - समाधिमरण या सल्लेखना, पृष्ठ-३८
SR No.002296
Book TitleSamadhimaran Ya Sallekhana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHukamchand Bharilla
PublisherPandit Todarmal Smarak Trust
Publication Year2015
Total Pages68
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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