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________________ आगम के आलोक में ____ डॉ. भारिल्ल - मेरी समझ में इसका एकमात्र कारण वे बड़े-बड़े उत्सव हैं, जो हम प्रभावना के नाम पर करते हैं। बढ़ा-चढ़ाकर प्रचार करते हैं, अखबारों में देते हैं। ऐसा लिखते हैं कि उन्होंने खाना बन्द कर दिया है, अकेला पानी ले रहे हैं। अब वह भी बन्द कर दिया गया है। __इन सब बातों से ऐसा लगता है कि स्वस्थ व्यक्ति का भोजनपानी बन्द कर दिया है। सल्लेखना एक व्यक्तिगत क्रिया है। उसका अनुष्ठान गुरु के सान्निध्य में होता है। उसके प्रचार-प्रसार की रंचमात्र भी आवश्यकता नहीं है। सल्लेखना एक सहज प्रक्रिया है। उसमें इतना आडम्बर करने की आवश्यकता नहीं है। अखिल बंसल - आवश्यकता क्यों नहीं है? यह तो एक महोत्सव है, मृत्यु महोत्सव है। ___ डॉ. भारिल्ल - महोत्सव तो है, पर उसमें आडम्बर नहीं है, रोना-गाना नहीं है। इस सन्दर्भ में तो मैंने अपनी पुस्तक में लिखा है - “कुछ विचारकों ने इसे महोत्सव कहा है, मृत्यु महोत्सव कहा है; पर इस महोत्सव में कोलाहल नहीं है, भीड़-भाड़ नहीं है। नाच-गाना नहीं है, झाँझ-मजीरा नहीं है, आमोद-प्रमोद नहीं है, खानापीना नहीं है, खाना-खिलाना भी नहीं है। किसी भी प्रकार का हलकापन नहीं है। कषायों का उद्वेग नहीं है, रोना-धोना भी नहीं है। शोक मनाने की बात भी नहीं है । एकदम शान्त-प्रशान्त वातावरण है, वैराग्य भाव है, गंभीरता है, साम्यभाव है। यहाँ एक प्रश्न हो सकता है कि आप यह सब क्यों बता रहे हैं? इस बात को तो सभी लोग जानते हैं कि यह एक गंभीर प्रसंग है, इसमें उछलकूद की आवश्यकता नहीं है। बात तो आप ठीक ही कहते हैं; परन्तु कुछ लोग महोत्सव का
SR No.002296
Book TitleSamadhimaran Ya Sallekhana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHukamchand Bharilla
PublisherPandit Todarmal Smarak Trust
Publication Year2015
Total Pages68
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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