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आगम के आलोक में - डॉ. भारिल्ल - जब खड़े होकर आहार नहीं ले सकते तो अब अपरिमित काल तक महाव्रत रूप सकल संयम को तो बचाया नहीं जा सकता; पर अणुव्रत के रूप में देशसंयम को तो बचाया ही जा सकता है। सातवीं प्रतिमा धारण कर लें तो देश संयम बच जायेगा। ___ पहले भी गुरुओं ने अपने योग्य शिष्यों को अपने अमूल्य नरभव को बचाने की सलाह और आदेश दिये ही हैं। आचार्य समन्तभद्र इसके उत्कृष्ट उदाहरण हैं। चर्चित मुनिराज को भी अपने गुरु से ही आज्ञा लेना चाहिये, मार्गदर्शन लेना चाहिये। ___ आज भी अनेक लोग अपने गुरु की अनुमतिपूर्वक गृहस्थ के रूप में आपरेशन आदि इलाज कराते हैं और बाद में पुनः दीक्षा ले लेते हैं। ___ अखिल बंसल - आप भी विद्वान हैं और आपने सल्लेखना के बारे में अध्ययन भी खूब किया है। पुस्तक भी लिखी है । अतः आपको बात टालना नहीं चाहिये। ___ डॉ. भारिल्ल - टाला कहाँ है? जहाँ तक मेरी समझ है । मैंने उत्तर दे ही दिया है। मैंने तो ग्रहस्थों की सल्लेखना के बारे में अध्ययन किया है। वस्तुतः बात यह है कि अब हमारा भी समय आ गया है। अतः हमने तो स्वयं के कल्याण के लिये सल्लेखना के संबंध में गहरा अध्ययन किया है। लिखने से वस्तु व्यवस्थित हो जाती है। इसलिये उक्त अध्ययन-चिंतन को व्यवस्थित रूप प्रदान कर दिया है। __ अखिल बंसल - आपके इस अध्ययन का लाभ भी तो सभी को मिलना चाहिये।
डॉ. भारिल्ल - मेरी भी यही भावना है।
अखिल बंसल - लोग तो सल्लेखना के समय श्रावकों को मुनि बना देते हैं और आप मुनिराज को श्रावक बनने की सलाह दे रहे हैं।