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________________ एक साक्षात्कार : डॉ. भारिल्ल से - अखिल बंसल (जैन समाज के लब्धप्रतिष्ठ विद्वान् अ.भा.दि. जैन विद्वत्परिषद् के राष्ट्रीय अध्यक्ष डॉ. हुकमचन्द भारिल्ल से समाधि और सल्लेखना जैसी आज की ज्वलन्त समस्या पर प्रखर पत्रकार - अ.भा. जैन पत्र सम्पादक संघ के कार्याध्यक्ष एवं समन्वयवाणी के सम्पादक अखिल बंसल का दिनांक 12 अगस्त 15 को लिया गया विशेष साक्षात्कार।) अखिल बंसल - यह जानकर बहुत प्रसन्नता हुई कि आपने सल्लेखना (समाधिमरण) पर एक किताब लिखी है; जो शीघ्र ही प्रकाशित होने जा रही है, अभी प्रेस में है। ___उक्त संदर्भ में मेरा एक प्रश्न है कि एक मुनिराज को कोई बीमारी नहीं है। सभी कुछ ठीक-ठाक है; परन्तु उनके पैर में गंभीर चोट लग जाने से वे खड़े नहीं हो सकते, दूसरों के सहयोग से भी खड़े नहीं हो सकते। ऐसी स्थिति में क्या उन्हें सल्लेखना ले लेना चाहिये या और भी कोई रास्ता है? कृपया मार्गदर्शन करें। __ डॉ. भारिल्ल - मैं साधारण गृहस्थ हूँ, श्रावक हूँ; मुनिराजों का मार्गदर्शन करना मेरा काम नहीं है। उन्हें अपने दीक्षागुरु के सामने अपनी समस्या रखनी चाहिये। अखिल बंसल - अब तो उनके पास एक ही रास्ता बचा है कि वे अन्न जल-त्याग कर सल्लेखना धारण कर लें; क्योंकि मुनिराज खड़ेखड़े आहार लेते हैं; जो उनके लिये अब संभव नहीं है। ___ डॉ. भारिल्ल - आहार जल त्याग कर मृत्यु का वरण कर लेने पर जहाँ भी जावेंगे; वह दशा निश्चित रूप से असंयम रूप होगी; क्योंकि जन्म के समय किसी भी गति में किसी को संयम नहीं होता। अखिल बंसल - क्या असंयम से बचने के लिये उनके पास कोई अन्य रास्ता नहीं?
SR No.002296
Book TitleSamadhimaran Ya Sallekhana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHukamchand Bharilla
PublisherPandit Todarmal Smarak Trust
Publication Year2015
Total Pages68
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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