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को मानता है या नहीं; इस ऊहापोह में उलझे हुए लोगों का ध्यान मैं इस तथ्य की ओर आकर्षित करना चाहता हूँ कि विज्ञान आज तक आत्मा के अस्तित्व को नकार नहीं सका है और न ही इस संबंध में अपने कोई ठोस विचार ही प्रस्तुत कर सका है। इसका तात्पर्य यह है कि विज्ञान आत्मा के संबंध में अज्ञानी है और किसी अज्ञानी के विचारों का क्या महत्त्व है?
पुद्गल अति स्थूल है व आत्मा अति सूक्ष्म। सभी जानते हैं कि वैज्ञानिक शोध-खोज के लिए अत्यन्त सूक्ष्म व एक्यूरेट, अति संवेदनशील उपकरणों की आवश्यकता होती है, उनके बिना सही निरीक्षण व गणनायें नहीं की जा सकती हैं व सही निष्कर्षों पर नहीं पहुँचा जा सकता है।
विज्ञान के विषयों में आगे की शोध-खोज प्रारम्भ करने से पूर्व वैज्ञानिक लोग स्वयं अबतक की शोध-खोज का बड़ी गहराई से विधिवत् अध्ययन करते हैं, तत्संबंधी प्रचलित विभिन्न मान्यताओं का तुलनात्मक अध्ययन करते हैं, विभिन्न प्रयोगों के द्वारा उन्हें स्वयं प्रमाणित करते हैं और इस प्रक्रिया में सामान्यतया उनका आधे से अधिक जीवन व्यतीत हो जाता है, तब वे अपने आपको इस स्थिति में पाते हैं। ___ उसीप्रकार आत्मा भी शोध-खोज का विषय है, आत्मा की शोधखोज के लिए भी एक सतर्क, समर्पित, अत्यन्त सरल; क्रोध, मान, माया, लोभ, भय व अन्य सामान्य मानव सुलभ कमजोरियों से रहित एक निर्भार, पवित्र, सूक्ष्मान्वेषी, साधक आत्मा की आवश्यकता है, जो कि
गहराइयों में जाकर आत्मा का अनुभव कर सके। ... आज के इन वैज्ञानिकों ने आत्मा व धर्म से संबंधित सभी प्रचलित विचारधाराओं का गइराई से अध्ययन व शोध की ही नहीं है, तब वे किसप्रकार इस विषय पर अपने विचार प्रकट करने के भी अधिकारी हो सकते हैं।
अरे भाई ! हर विषय की शोध-खोज की विधि, उपकरण व स्थल अलग-अलग हुआ करते हैं। भौतिक विज्ञान, जीव विज्ञान व रसायन
- क्या मृत्यु महोत्सव अभिशाप है १/५२