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________________ ऐसे में किसी का क्या भरोसा कि वह विज्ञान के नाम पर अपनी स्वयं की धार्मिक निष्ठा का ही प्रसार करने का यत्न नहीं कर रहा है। एक बहुत बड़ा व महत्त्वपूर्ण तथ्य यह भी है कि वैज्ञानिक शोधखोज में लगे लोग सन्त महात्मा नहीं हुआ करते, अधिकतर वे सभी लोग सभी प्रकार की मानव सुलभ कमजोरियों के दास व शिकार होते हैं, सामान्यतया उनके जीवन में खान-पान व चारित्र-आचरण संबंधी पवित्रता का दर्शन दुर्लभ ही होता है तथा वे भय-लोभ, मान-क्रोध, छल-कपट, मिथ्यावादी आदि कमजोरियों के शिकार होते हैं। जिनका भोजन ऐसा हो, जिसमें अत्यन्त क्रूरता निहित हो (जो मांसाहारी हों) या जो ऐसे व्यसनों जैसे कि शराब पीना या अन्य नशा करना, वेश्या गमन करना, परस्त्री रमण करना, जुआ खेलना आदि में गहराई से डूबे हुए हों; ऐसे लोग तो जगत के साधारण से साधारण निर्णय भी ठीक ढंग से करने के लायक नहीं रह जाते, जगत में भी विश्वसनीय नहीं माने जाते हैं, नशे में विवेक रह ही कहाँ पाता है ? अन्य व्यसन भी अत्यन्त अविवेक की ओर ही संकेत करते हैं। ऐसी वृत्तियों वाले, हीन गतिविधियों में लिप्त व्यक्ति, परम पवित्र आत्मा के बारे में; अति सूक्ष्म, अदृश्य, अस्पर्श आत्मा के बारे में क्या शोध-खोज कर सकते हैं ? ___ यह तो स्पष्ट ही है कि वैज्ञानिक लोगों का अध्ययन विज्ञान की अपनी विधाओं के बारे में कितना भी गहरा क्यों न हो, दार्शनिक मामलों में वे बालकवत् ही हैं। दरअसल यह भी हमारा भ्रम ही है कि दार्शनिक व आध्यात्मिक (धार्मिक) मान्यताओं को विज्ञान मान्यता नहीं देता है या ये मान्यतायें विज्ञान की कसौटी पर खरी नहीं उतरती हैं, सच्चाई तो यह है कि विज्ञान ने इन्हें कभी कसौटी पर कसने का प्रयास ही नहीं किया है। विज्ञान आत्मा के अस्तित्व को स्वीकार करता है या नहीं, पुनर्जन्म - क्या विज्ञान धर्म की कसौटी हो सकता है ?/५१
SR No.002295
Book TitleKya Mrutyu Abhishap Hai
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParmatmaprakash Bharilla
PublisherPandit Todarmal Smarak Trust
Publication Year2015
Total Pages64
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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