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________________ शास्त्र का अध्ययन तत्संबंधी प्रयोगशालाओं में उपकरणों की सहायता से किया जाता है, पर मनोविज्ञान का अध्ययन उसी विधि से उन्हीं प्रयोगशालाओं में नहीं हो सकता। मानव जीवन ही इसकी प्रयोगशाला है और वह यत्र-तत्र-सर्वत्र उपलब्ध है। उनके अध्ययन की विधि भिन्न है, योग्यता भिन्न है। क्या एक भौतिक या रसायन विज्ञानी या एक गणितज्ञ मनोविज्ञान का अध्ययन करके सही निष्कर्ष निकाल सकता है ? कभी नहीं। गणितज्ञ एक और एक-दो की बात पकड़कर बैठ जायेगा, पर मनो वैज्ञानिक जानता है कि किसप्रकार एक और एक दो ही नहीं, बल्कि ग्यारह भी होते हैं। एक और एक मिलकर उसमें निहित ग्यारह की शक्ति को जिसप्रकार गणितज्ञ नहीं पहिचान सकता; उसीप्रकार अदृश्य अत्यन्त सूक्ष्म आत्मा की महान, अनन्त शक्ति को आज का यह भौतिकवादी विज्ञान नहीं पहिचान सकता। अतः आत्मा की खोज के लिए इस भौतिक विज्ञान की ओर ताकना व्यर्थ है। ___अरे ! न्याय का विज्ञान कहेगा कि खून की सजा खून, मौत की सजा मौत; पर मातृत्व का मनोविज्ञान इसे कभी स्वीकार नहीं कर सकता। अपनी ही सन्तान की शिकार बनी माता का मनोविज्ञान अपने कातिल बेटे को सिर्फ आशीर्वाद ही दे सकता है, अभिशाप नहीं। यह कोई आदर्श या कोरी कल्पना नहीं, मातृत्व मनोविज्ञान का यथार्थ है, इस सत्य को वह आंखों पर काली पट्टी बांधे न्याय का विज्ञान भला क्या समझेगा ? कहने का तात्पर्य यह है कि सब विषय अपने आप में भिन्न-भिन्न, अपनी-अपनी विशेषतायें लिए हुए हैं व एक विषय का दूसरे के अधिकार क्षेत्र में हस्तक्षेप उचित नहीं है। इसलिए उचित यही है कि हम विज्ञान को विज्ञान का काम करने दें व धर्मात्माओं को धर्म का कार्य करने दें, दोनों को मिलाये नहीं। - क्या विज्ञान धर्म की कसौटी हो सकता है ?/५३ -
SR No.002295
Book TitleKya Mrutyu Abhishap Hai
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParmatmaprakash Bharilla
PublisherPandit Todarmal Smarak Trust
Publication Year2015
Total Pages64
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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