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के उपाय करना भी हमारी उनके प्रति अनिच्छा नहीं है ?
मेरे उक्त विश्लेषण का मतलब परिवार नियोजन कार्यक्रम से मेरी सहमति या असहमति नहीं है। यह तो शुद्ध बौद्धिक विश्लेषण है, हमारी वृत्ति का, हमारे मनोभावों का ।
हम तनिक विषयान्तर हो गए।
तात्पर्य यह है कि वर्तमान जीवन की अमरता का लक्ष्य हासिल करते ही हमें रुक जाना होगा, जहाँ के तहाँ । फिर नवसृजन के लिए अवकाश ही नहीं रहेगा। क्या हमें यह अभीष्ट है ?
अब यह मत कहियेगा कि अमरत्व की यह परिकल्पना आपने मात्र स्वयं अपने लिए की है, अन्य किसी के लिए नहीं; क्योंकि यह चाहत रखने वाले आप अकेले ही नहीं हैं, सभी तो हैं।
यदि आप यह उपलब्ध कर सकते हैं तो कोई अन्य क्यों नहीं ? फिर आप भी स्वयं ही यह सुविधा मात्र अपने लिए उपलब्ध नहीं करना चाहेंगे। न सही अन्यों के लिए, पर अपनों के लिए तो चाहेंगे ही; क्योंकि अकेले-अकेले तो जीने में भी क्या मजा है ?
अरे हम तो वह हैं कि यदि १०-२० लोग साथ मरने को तैयार हो तो हमें मरने से भी एतराज नहीं और अकेले तो हम जीना भी नहीं
चाहते।
जब आप अपनों को अमरत्व बांटने निकलेंगे तो अपनत्व का यह दायरा द्रौपदी के चीर की भाँति इसतरह बढता चला जावेगा कि शायद अन्ततः 'वसुधैव कुटुम्बकम्' की अवधारणा पर पहुँचकर ही थमे, यानि कि सारी सृष्टि ही अपनों में शामिल हो जावेगी ।
आपकी समस्त परिकल्पनाओं को नकारता हुआ मैं आपको अत्यन्त निष्ठुर प्रतीत हो रहा होऊँगा, पर निराश होने की आवश्यकता नहीं ।
मेरे पास इस समस्या का एक इतना उत्तम समाधान उपलब्ध है, जिसमें मृत्यु से होनेवाली हानियों से तो बचा जा सकता है व लाभ बनाये क्या मृत्यु महोत्सव अभिशाप है ? / ३४