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________________ जीवन में रखा ही क्या है, और यदि परिजनों के लिए, तो उनकी स्थिति तो सामने है, उन्हें तो आपकी आवश्यकता ही नहीं। अब भी क्या आप मृत्यु को टालना या अमर होना पसन्द करेंगे? आप कह सकते हैं कि आप तो असमर्थ जीवन का वर्णन करके हमें जीवन से डराना चाहते हैं। हम कोई असमर्थ व अस्वस्थ्य होकर थोड़े ही जीना चाहते हैं। हम तो स्वस्थ्य, सबल व सक्रिय जीवन जीना चाहते हैं। सच ही तो कहा है। ‘मन के लड्ड फीके क्यों' यदि चाहत ही करनी है तो अपूर्ण क्यों ? आइये हम इस पर भी विचार कर लें। यदि इसप्रकार सबल, स्वस्थ व सक्रिय बने रहकर सभी के लिए अमर होना सम्भव हो तो इस पृथ्वी की जनसंख्या का क्या होगा ? तब भी क्या यह जगत रहने जैसा स्थान बना रह सकेगा ? तब भी क्या सभी के लिए सब कुछ उपलब्ध रह सकेगा ? जीवन संघर्ष का क्या • होगा ? अभी जब मृत्यु का प्रावधान है, तब जनसंख्या इतनी बड़ी समस्या बनी हुई है कि माता-पिता स्वयं अपनी संतान को जीवित रखना नहीं चाहते, तब फिर अमरता की स्थिति में क्या होगा? ___आप शायद मेरी इस बात से सहमत न हों। अरे मात्र असहमत ही नहीं, वरन् शायद आपको सख्त एतराज भी हो सकता है मेरे इस कथन पर कि माता-पिता स्वयं अपनी संतान को जीवित रखना नहीं चाहते। पर मैं आपसे पूछता हूँ कि आखिर गर्भपात क्या है ? क्या अपने ही शिशु की हत्या नहीं है? उस शिशु की, जो अपनी रक्षा के लिए हम पर ही निर्भर है। अरे गर्भपात की बात जाने दीजिए, क्या अपनी अधिक संतानों का अफसोस होना, उनके होने की अनिच्छा को नहीं दर्शाता? न सही अफसोस, पर यदि हमें शर्म भी आती है, उनके होने पर; क्या यह हमारी उनके प्रति अनिच्छा नहीं है ? और क्या उनके न हो सकने - क्या मृत्यु महोत्सव अभिशाप है ?/33
SR No.002295
Book TitleKya Mrutyu Abhishap Hai
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParmatmaprakash Bharilla
PublisherPandit Todarmal Smarak Trust
Publication Year2015
Total Pages64
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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