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छोड़कर एक अन्धे कुएँ में अपने आपको झोंक दें। - बस, इसीलिए हम मृत्यु से डरते हैं।
वस्तुतः तो जगत के समस्त संयोग या वियोग सुनिश्चित ही हैं, उन्हें चुनना हमारे हाथ में है ही नहीं, फिर भी विवाहादिक प्रसंगों पर हमारे इस भ्रम की पुष्टि होती सी दिखाई देती है कि चुनाव हमने किया है
और चाहते तो इन्कार भी कर सकते थे; परन्तु मृत्यु के सन्दर्भ में हमारे इस भ्रम की पुष्टि नहीं होती है, क्योंकि हम चाहें या न चाहें, मृत्यु अपरिहार्य है। __ जब मृत्यु निश्चित ही है व इसे मेंटा ही नहीं जा सकता, तब क्यों न हम इसे स्वीकार ही कर लें ? पर नहीं, यहाँ भी हमें आशा की एक किरण दिखाई दे ही जाती है। हम बड़े ही आशावादी जो ठहरे।
हमें लगता है कि ठीक है मृत्यु होना तो निश्चित है, उसे मेंटा तो नहीं जा सकता, पर टाला तो जा सकता है न ! आज होनेवाली मृत्यु को कल तक के लिए ही सही, टाला तो जा सकता है न ! और यदि एक कल के लिए ऐसा किया जा सकता है तो दो-चार कलों के लिए क्यों नहीं ? अरे अनन्त कलों के लिए क्यों नहीं, अनन्त काल के लिये क्यों नहीं ?
और इसप्रकार हमें जहाँ वस्तुस्वरूप में परिवर्तन करने की तनिक सी गुजाइश दिखाई देती है; वहाँ हम अनन्त सम्भावनाओं की तलाश करने लगते हैं। ___ क्या सचमुच मृत्यु को कुछ समय के लिए टाला जा सकता है, यह पृथक् चिन्तन का विषय है। ____यहाँ तो हमारी व्यथा यह है कि अन्य विषयों की तरह मृत्यु के सन्दर्भ में, मृत्यु का समय व प्रकार तथा मृत्यु के बाद के पुर्नजन्म को चुनने व जानने का साधन हमारे पास नहीं है; पर यह सच नहीं है।
क्या कहा ?
तो क्या कोई ऐसा तरीका है, जिससे हम अपना अगला जीवन सुनिश्चित कर सकते हैं ? जान सकते हैं ?
- क्या मृत्यु महोत्सव अभिशाप है ?/२०