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के विवाह व स्वयं की मृत्यु में बहुत करीबी समानतायें हैं।
विवाह के बाद कन्या का नाम, गोत्र, कुल, परिवार, घर, गाँव, सम्पत्ति, अधिकार, अपने-पराये सब बदल जाते हैं और इसीप्रकार मृत्यु होने पर पुनर्जन्म में भी होता है, फिर यदि कन्या यह सब जानते हुए खुशी-खुशी विवाह करती है, तब ऐसी ही समान स्थितियों में हम मृत्यु से भयभीत हों, यह समझ से परे है।
तब फिर वह कौनसा कारण है जो अव्यक्त में ही हमें मृत्यु के प्रति भयभीत बनाये रखता है ? ___ तनिक गहराई से विचार करने पर समझ में आता है कि मृत्यु के द्वारा होनेवाला परिवर्तन, कपड़े बदलने से या विवाह से या परदेश गमन एवं. स्थान परिवर्तन से इसलिए भिन्न है कि वस्त्र बदलने से पूर्व नये वस्त्रों का चुनाव हम स्वयं करते हैं व तब उन्हें देखभाल कर, पसन्द करके, उन्हें अपने लिए अनुकूल व आनन्ददायक जानकर स्वीकार कर लेते हैं व प्रसन्नतापूर्वक पुराने वस्त्र त्याग देते हैं। ___ विवाहादि के बारे में भी ऐसा ही है। हम स्वयं अपने भावी जीवन साथी व भावी जीवन का चुनाव करते हैं, उनकी विवेचना करते हैं, उसे वर्तमान से अच्छा व आनन्ददायक मानकर उसका वरण करते हैं व गातेबजाते, खुशी-खुशी अपने वर्तमान को त्याग देते हैं। ___ अपनों को व घर को छोड़कर दूर देश जा बसने से पहले उसके बारे में सारी जानकारी प्राप्त कर लेते हैं व बेहतरी से आश्वस्त होकर ही कोई कदम आगे बढ़ाते हैं।
इसप्रकार यहाँ हमें लगता है कि चुनाव हमारे ही हाथ में है व भविष्य निश्चित ही हमारे वर्तमान से बेहतर है, इस विश्वास के साथ हम आगे बढते हैं, पर मृत्यु के बारे में ऐसा नहीं है, वहाँ न तो भविष्य को चुनने का अधिकार हमारे हाथ में है और न ही उसके बारे में जानकारी ही है, तब कैसे हम यहाँ जो जैसा है, देखा-जाना व well settled वह सब कुछ
- क्या मृत्यु महोत्सव अभिशाप है १/१९