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________________ क्या मृत्यु अभिशाप है ? "आज मृत्यु महोत्सव का मंगलमय प्रसंग है। " आपको अटपटा लग रहा होगा कि मैं यह क्या कह रहा हूँ? कहीं मजाक तो नहीं कर रहा हूँ? क्या यह मजाक का अवसर है ? नहीं! कदापि नहीं !! यह मैं नहीं कह रहा हूँ। यह तो शास्त्रों में लिखा है। आचार्यों ने मृत्यु को महोत्सव कहा है। महोत्सव तो मंगलमय प्रसंग हुआ करता है, आनन्द से ओतप्रोत, परिपूर्ण ! फिर यह शोकमय प्रसंग कैसे बन गया ? इसमें रोना-धोना कहाँ शामिल हो गया ? रोना-धोना शामिल क्या हो गया ? मात्र 'रोना-धोना' ही तो बचा है; हँसना - बोलना तो वर्जित हो गया है। आखिर यह कैसे हुआ? कब और कैसे यह आनंदमय महोत्सव, एक रुदन व क्रन्दन (रोने व बिलखने) के कार्यक्रम में बदल गया; हमें इस तथ्य की गहराई में जाना होगा । पहिले हम यह समझेंगे कि आखिर क्यों आचार्यों ने इसे 'मृत्यु महोत्सव' कहा? · हम लोग दीपावली के दिन नये वस्त्र धारण करते हैं व पुराने वस्त्रों को तिलांजलि दे देते हैं; छोड़ देते हैं। यही काम मुस्लिम लोग ईद के दिनं करते हैं व ईसाई लोग करते हैं क्रिसमस के दिन । मैं आपसे पूछना चाहता हूँ कि हिन्दुओं की दीपावली, मुस्लिमों की ईद या ईसाइयों की क्रिसमस, मातम का दिन है या महोत्सव का ? उस क्या मृत्यु महोत्सव अभिशाप है १/११
SR No.002295
Book TitleKya Mrutyu Abhishap Hai
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParmatmaprakash Bharilla
PublisherPandit Todarmal Smarak Trust
Publication Year2015
Total Pages64
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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