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के कार्य सम्पन्न कर देने का दावा करने वाले कुछ तथाकथित छोटे-छोटे परमात्मा हमें अपने इर्द-गिर्द ही मिल जाते हैं और तब 'मरता, क्या न करता इस नीति के अनुसार हम सहज ही उनकी गिरफ्त में आ जाते हैं।
जीवन के इस मुकाम पर व्यक्ति के पास शक्ति, समय व धैर्य का नितान्त अभाव होता है। ऐसे में उसके पास इन प्रश्नों के उत्तर से सम्बन्धित विभिन्न प्रचलित मान्यताओं के अध्ययन और उसकी प्रामाणिकता को जाँचने का अवसर नहीं होता है और अमूमन यह अपने आसपास प्रचलित मान्यताओं से ही अपने आपको बहलाने लगता है । असमंजस की ऐसी स्थिति में उसके इन विचारों में दृढ़ता का अभाव बना ही रहता है, फलस्वरूप प्रयत्न भी शिथिल से बने रहते हैं, तब साध्य की सिद्धि कैसे हो - इसप्रकार अपने आत्मा-परमात्मा के स्वरूप को समझकर उसके कल्याण करने का एक स्वर्णिम अवसर एक बार फिर हाथ से निकल जाता है।
प्रस्तुत कृति ऐसे ही अनेकों प्रश्नों के उत्तर प्रस्तुत करने के क्रम में मेरा प्रथम प्रयास है। इसका अध्ययन पाठकों में चिंतन की एक सार्थक प्रक्रिया प्रारम्भ करने में निमित्त बने व चिंतन को एक दिशा दे सके तो मेरा यह प्रयास सार्थक होगा । २५ नवम्बर, २००८ ई.
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- परमात्मप्रकाश भारिल्ल
क्या मृत्यु महोत्सव अभिशाप है ? / १०