SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 11
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ भी समाप्त होता दिखने लगता है, तब इसे भविष्य की याद आती हैं। कल तक जो भविष्य के लिए कुछ भी करना भारभूत लगता था; बन्धनकारक लगता था; अब उसी भविष्य की चाहत पैदा होने लगती हैं। __अब यदि भविष्य न हो, पुनर्जन्म न हो तो सब कुछ समाप्त होता दिखने लगता है। तब इसे पुनर्जन्म की चाहत पैदा होने लगती है। अब यह उसकी संभावनायें तलाशने लगता है। जहाँ आशा की एक क्षीण सी भी किरण दिखाई देती है, उसका आधार खोजने का प्रयास करता है; उसकी सच्चाई के बारे में आश्वस्त होना चाहता है और फिर उस भविष्य को संवारने के उपाय खोजने लगता है, संवारने के प्रयासों में जुट जाता है। इस जन्म की कमाई को अगले जन्म में ट्रांसफर करने के उपाय खोजने व करने लगता है। इस क्रम में इसे कर्म व कर्मफल के विधान की आवश्यकता भासित होती है और यह इस गुत्थी को सुलझाने के प्रयास में और अधिक उलझता चला जाता है। इस संबंध में अनेक प्रश्न दिमाग में उठते हैं। क्या स्वयं किये कर्मों का फल हमें भोगना ही पड़ता है, क्या इससे बचने का कोई उपाय नहीं है; क्योंकि ऐसे कर्म तो कोई करता नहीं है, जिसका फल भोगने की चाहत मन में हो। हमारे कर्म तो ऐसे होते हैं, जिनके फल भोगने से हम किसी भी कीमत पर बचना चाहते हैं और इसी प्रक्रिया में ऐसी किसी सर्वशक्तिमान हस्ती की आवश्यकता महसूस करते हैं जो हमारे स्वयंकृत कर्मों का अभिशाप भुगतने से हमें मुक्त कर दे; चाहे मात्र पूजा-भक्ति या प्रार्थना की कीमत पर या फिर कुछ ले-देकर ही सही। इसप्रकार भगवान हमारे जीवन में आते हैं। जब ऐसे किसी भगवान की कल्पना हमारे चित्त में आती है, जो हमें हमारे स्वयंकृत कर्मों का फल भोगने से बचा सके; तब ऐसा कोई सर्वशक्तिमान परमात्मा तो हमें दिखाई देता नहीं, वह तो मात्र हमारी तथाकथित आस्था के सिंहासन पर ही विराजमान रहता है; पर इस तरह - क्या मृत्यु महोत्सव अभिशाप है ?/९
SR No.002295
Book TitleKya Mrutyu Abhishap Hai
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParmatmaprakash Bharilla
PublisherPandit Todarmal Smarak Trust
Publication Year2015
Total Pages64
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy