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________________ चाहिए ? क्या हम कुछ आदर्श पात्रों का चुनाव नहीं कर सकते थे, जिन्होंने अपने जीवन के लक्ष्य निर्धारित किये थे और फिर उन्हीं लक्ष्यों को हासिल करने के लिए अपने जीवन की एक विशिष्ट शैली निर्धारित की थी, कुछ सिद्धान्तों का पालन किया था ? और अन्ततः हम भी उन पात्रों के समान अपने लक्ष्य को हासिल कर सकते थे। हमने अनुसरण भी किया तो वह भी भीड़ का भारी भीड़ में खड़े एक जनसामान्य की मानसिकता का अनुसरण किया, उसकी ही विचारधारा अपना ली, उसके जैसा ही आचरण करने लगे, उसके जैसी ही क्रियायेंप्रतिक्रियायें व्यक्त करने लगे; पर क्या कभी विचार किया कि ऐसा करके हम क्या पा सकेंगे ? अरे और क्या पा सकेंगे भीड़ का अनुसरण करके तो हम मात्र भीड़ का ही हिस्सा बन सकते हैं, एक अदना सा हिस्सा, लाखों लोगों जैसा; पर लाखों में मात्र एक, जिसकी शायद कोई अहमियत ही नहीं, कोई गिनती ही नहीं। अरे भीड़ में हजारों की तो कोई गिनती ही नहीं होती, हम कहते हैं न कि 10-15 हजार लोग थे। मानों, जैसे 10 हजार वैसे 15 हजार। 5 हजार कम या ज्यादा ! क्या फर्क पड़ता है ? जिन पाँच-दस हजारों की कोई गिनती ही नहीं, हम उनमें से एक बनकर रह जायेंगे। यदि हम भीड़ का अनुसरण करेंगे तो भीड़ जैसे ही बन पायेंगे, कुछ विशिष्ट नहीं बन सकते। यदि हमें अनुसरण ही करना है तो उस विशिष्ट व्यक्ति का अनुसरण क्यों नहीं करें, जिसके इर्द-गिर्द यह लाखों की भीड़ मंडरा रही है ? यदि हम विशिष्ट का अनुसरण करें तो विशिष्ट बन सकते हैं; पर इस सबके लिए तो चिन्तन की आवश्यकता है न ! दरअसल मैंने अपने लिए विचारपूर्वक कोई मार्ग चुना ही नहीं, बस अन्जाने ही अपने इर्द-गिर्द जो पाया, उसका अनुसरण करता चला गया और इसी का परिणाम है कि आज मैं इस मुकाम पर खड़ा हूँ । अन्तर्द्वन्द / 23
SR No.002294
Book TitleAantardwand
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParmatmaprakash Bharilla
PublisherHukamchand Bharilla Charitable Trust
Publication Year2011
Total Pages52
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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