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फास-गंध-रस बहिरउ, रूव-विहूणउ सोइ । जीउ सरीरह भिणु करि, आणंदा रे सदगुरु जाणइ सोइ ।। देउ सचेयणु झाइयइ तज्जिय परु विवहारु । एक समइ झाणणालेण आणंदा रे दज्झइ कम्म-पयालु ॥
२१.
जावु जवइ बहु तवइ, तो वि ण कम्म हणेइ । एकु समउ अप्पा मुणइ, आणंदा रे चउगइ पाणिउ देइ ॥
२२.
सो अप्पा मुणि जीव तुहं, अण्णु करि परिहारु । सहज-समाधिहिं जाणियइ आणंदा रे जो जिण-सासण सारु । अप्पा संजम-सील-गुण, अप्पा दसणु णाणु । वउ तउ संजमु देउ गुरु, आणंदा रे अप्पा पहु णिव्वाणु ॥
२३.
२४.
परमप्पउ जो झाइयइ, सो सचउ विवहारु । समकित बाह बाहिरउ आणंदा रे कण-विणु गहइ पयालु ॥
२५.
माय-बप्प-कुल-जाति-विणु, णउ तसु रोसु ण राउ । सम्मा-दिठिहि जाणियइ, आणंदा रे सदगुरु करइ सुभाउ
२६. परमाणंद-सरोवरहिं, जो मुणि करइ पवेसु ।
अमिय-महारसु सो पिबइ, आणंदा रे गुरु-सामिहि उवएसु ॥ २७. महि साहहिं रमणिहिं रमहिं, जो चक्काहिवु होइ ।
णाण-वलेण जिणेवि मुणि, आणंदा रे सिवपुरी-णियडउ सोइ ॥