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________________ 15 १०. हे आनन्द, जो तीनों समय अपने से बाहर बसते हैं, परिषह का बोझ सहते हैं, तो भी दर्शन और ज्ञान से बाहर होने से उनको काल रूपी यम मार डालेगा। ११. हे आनन्द, जो (मुनि) पक्ष में अथवा मास में एक बार भोजन करते हैं, जो पाणीपात्र हैं (हथेली में से ग्रास लेते हैं) जो आशा रहित हैं (किन्तु जो आत्मा का ध्यान नहीं करते उनको यमपुरी में वास होता है। १२. हे आनन्द, जो मूढ मुनि बाह्य लिंग धारण करके निश्चित रूप से सन्तुष्ट होते हैं किन्तु केवल आत्मा का ध्यान नहीं धरते उनके लिये सिवपुरी नहीं है, यह निश्चित है। १३. हे आनन्द, जो लोग जिनवर को पूजते हैं, गुरु की स्तुति करते हैं, शास्त्र का सम्मान करते हैं, फिर भी यदि देव स्वरूप आत्मा का चिंतन नहीं करते हैं वे यमपुरी जाते हैं। १४. हे आनन्द, जो लोग सिद्धों का ध्यान करते हैं और ध्यान से (कर्म रूपी)शत्रुओं पर विजय पाते हैं उनके लिये मोक्ष महापुर निकट होता है । वे भव के दुःखों को तिलांजलि देते हैं।' १५. हे आनन्द, मुनिवर कहते हैं जिन भी असमर्थ है, उनका किसी को तारने का सामर्थ्य नहीं है। यह मार्ग त्रिभुवन में कहा गया कि (आप स्वयं)जो करते हैं वही होता है। १६. हे आनन्द, जैसे अग्नि काष्ठ में व्याप्त रहती है, पुष्पों में परिमल रहता है वैसे ही देह में जीव बसता है इस बात को कोई विरला समझता है। . १७. हे आनन्द, शिव (परमात्मा) देव बंध रहित होते हैं, वे निर्मल है, मल रहित है। कमलपत्र पर रहते जल बिंदु की तरह उनको न पाप का स्पर्श होता है न पुण्य का । १८. हे आनन्द, हरि, हर और ब्रह्मा भी शिव (परमात्मा) नहीं है वह मन या बुद्धि से देखा नही जा सकता । अपने शरीर में ही उनका वास है, गुरु कृपा से उनका दर्शन होता है।
SR No.002292
Book TitleAnanda
Original Sutra AuthorN/A
AuthorH C Bhayani, Pritam Singhvi
PublisherParshwa International Shaikshanik aur Shodhnishth Pratishthan
Publication Year1999
Total Pages28
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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