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________________ 15 भाषा भाषा की दृष्टि से देखेंतो इस कृति की भाषा भारतीय भाषाओं के सन्धिकाल के समय की होनी चाहिये । मूल भाषा में थोडा आधुनिकीकरण है । सरल भाषा में सीधा उपदेश दिया गया है । शैली रचना की शैली सरल है । व्यापक वर्ग के समक्ष जैन धर्म की बारह भावनाओं को प्रस्तुत करने का आशय होने से यह स्वाभाविक है । अनुवाद 1 रचना का अनुवाद मूलपाठ अच्छी तरह समझा जाय, इस दृष्टि से मूलानुसार ही रखा है । जो हमने शुद्धि की है वह कहीं अर्थ की दृष्टि से या छन्द की दृष्टि से की है। जहाँ पर अर्थ नहीं बैठा सकें वहाँ हमने या तो अनुमान से अर्थ किया है, शंकासूचक प्रश्नार्थ रखा है या स्थान खाली रखा है । ऋण स्वीकार 'अणुपेहा' की झेरोक्स - कापी हमें सुलभ कराने के लिये, उसका सम्पादन करने के लिये उपयोग करने की संमति देने के लिये हम अपभ्रंश साहित्य अकादमी (जैन विद्या संस्थान, दिगम्बर जैन अतिशय श्री महावीरजी, जयपुर) के तथा अकादमी के संयोजक डॉ. कमलचन्द सोगाणी के अत्यन्त ऋणी हैं । उपरोक्त पुस्तक के मूलपाठ का अनुवाद करने में तथा उसके शुद्ध स्वरूप को समझने में डा. भायाणी सा. का समय-समय पर जो सहकार व मार्गदर्शन प्राप्त हुआ उसके लिये मैं अपना हार्दिक आभार ज्ञापित करती हूँ । इस पुस्तक को प्रकाशित करने के लिये पार्श्व शैक्षणिक और शोधनिष्ठ प्रतिष्ठान (अहमदाबाद) प्रति मैं हार्दिक आभार प्रकट करती हूँ । क्रिश्ना ग्राफिक्स, अहमदाबाद को सुन्दर छपाई के लिये धन्यवाद देती हूँ । प्रीतम सिंघवी
SR No.002291
Book TitleAnupeha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPritam Singhvi
PublisherParshwa International Shaikshanik aur Shodhnishth Pratishthan
Publication Year1998
Total Pages36
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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