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________________ एक पीढी और दूसरी पीढी के बीच २० या २५ वर्ष का अन्तर हम मानें तो लक्ष्मीचंद्र का समय सम्भवतः विक्रम की १५वीं शताब्दी के बीच रखा जा सकता है । महाचंद्रमुनि का समय भी इसके बाद अर्थात् १६वीं शताब्दी में माना जा सकता है। हमने 'बारहक्खर - कक्क' में पृष्ठ २३ पर उस रचना का समय भाषा के स्वरूप के आधार पर १३वीं शताब्दी के करीब होने की जो अकटल की थी वह शायद सही न हो । हूँ । डॉ. भायाणी ने इस ओर मेरा ध्यान खिचा उसके लिये मैं 14 साहित्यिक विधा दिगंबर परंपरा में जब कभी कोई आध्यात्मिक या धार्मिक विषय की रचना करते थे, तब उन रचनाओं को दोहाछंद में निबद्ध करने की प्रथा थी । जोइन्दु का 'परमप्पपयासु' रामसिंह मुनि का 'दोहा - पाहुड' और 'सावयधम्म दोहा' इत्यादि इसके उदाहरण है । इसमें सहजयानि सिद्धों जैसे की 'सरहपाद', 'कणहपाद' इत्यादि के दोहाकोशों की प्रेरणा भी थी । महयंद मुनि का बारहक्खर कक्क' और यह लक्ष्मीचंद का 'दोहानुपेहा' भी दोहा बद्ध है । रचना का स्वरूप और छंद V रचना दोहा छन्द में निबद्ध है । दोहा छन्द का स्वरूप इस प्रकार हैप्रथम और तृतीय चरण की मात्राएँ १३ । द्वितीय और चतुर्थ चरण की मात्राएँ ११ । विषम चरण की १३ मात्राओं का स्वरूप : ^ की ११ मात्राओं का स्वरूप : ६+४+३ (=~ अथवा नियम से अन्तिम तीन मात्राओं के पूर्व एक गुरु होता है । समचरण बहुत ^ -) आभारी ६+४+१ (= ~ ) नियम से अन्तिम लघु के पूर्व एक गुरु होता है ।
SR No.002291
Book TitleAnupeha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPritam Singhvi
PublisherParshwa International Shaikshanik aur Shodhnishth Pratishthan
Publication Year1998
Total Pages36
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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