SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 18
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ अणुपेहा पणवउ सिद्ध-महारिसिहि, जे पर - भावह मुक्क । परमानंद-परिट्ठिया, चउ- गइ - गमहं चुक्क ||१|| जइ वीहहिं चउ - गइ-गमण, तो जिण उत्तु करेहि । दो- दह अणुपेहा मुणहि, लहु शिव - सुक्खु लहेहि ॥२॥ जलुवुच्छउ ? जीविउ चवलु, धणु जोवणु तडि - तुल्लु इसउ जाणिवि मा गवँह, माणस - जम्मु अमुल्लु ॥३॥ 'जइ नित्तु वि जाणियइ वुह, तो परिहरहि अणित्तु । "तें कारणि नित्तु हि मुणहि, इम सुय- केवली वुत्तु ॥४॥ असर जाहि सयल वुह, जीवह सरणु न कोई । दंसण - णाण-चरित मउ, अप्पा अप्पर जोइ ॥५॥ दंसण - णाण - चरितं मउ, अप्पा सरणु मुणेहि । अणु ण सरणु वियाणि तुहुं, जिणवर एम भणेहि ||६|| तइलोउ वि नहु सरणु वुह, हउं कहु सरणहो जामि । इम जाणविणु थिरु रहिय, जि (?) तइलायहु सामि ॥७॥
SR No.002291
Book TitleAnupeha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPritam Singhvi
PublisherParshwa International Shaikshanik aur Shodhnishth Pratishthan
Publication Year1998
Total Pages36
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy