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________________ का उदयगिरि-खण्डगिरि प्राकृत शिलालेख न केवल जैन इतिहास की दृष्टि से महत्त्वपूर्ण है अपितु नन्दकालीन भारतीय इतिहास, मौर्य-पूर्व की भारतीय प्राच्य मूर्ति शिल्पकला, प्राचीन कलिंग एवं मगध से राजनैतिक सम्बन्ध, दक्षिण भारतीय राज्यों से कलिंग के सम्बन्ध, कलिंग की बहुमुखी प्रगति तथा लोककल्याणकारी राज्य के निर्माण का उसमें सुन्दर वर्णन मिलता है। यही वह शिलालेख है, जिसकी दशवीं पंक्ति में भारत का नाम भरधवस मिलने के कारण उसे प्राचीनतम शिलालेखीय प्रमाण मानकर भारत की स्वतन्त्रता-प्राप्ति के बाद उसकी संविधान निर्मात्री परिषद् ने उसका संवैधानिक नाम भारतवर्ष घोषित किया था। उक्त शिलालेख का मूल्यांकन करते हुए सुप्रसिद्ध पुराविद् डॉ. काशीप्रसाद जायसवाल ने इसे जैनधर्म की प्राचीनता सिद्ध करनेवाला अत्यन्त प्रामाणिक दस्तावेज बतलाया है। यही नहीं उनके कथनानुसार- उससे पुराणों की प्राचीन राजवंशावलियों का समर्थन होता है और ई.पू. 450 तक के प्राच्य भारतीय इतिहास के क्रम-निर्धारण में भी वह विशेष सहायक है। इस शिलालेख से यह भी स्पष्ट होता है कि भगवान् महावीर के परिनिर्वाण के लगभग 100 वर्ष बाद ही जैनधर्म कलिंग का राष्ट्रधर्म बन गया था। 102.खरोष्ठी प्राकृत लेख खरोष्ठी के लेख चीनी तुर्किस्तान तुरफान में भी मिले हैं जिनका अनुसंधान विद्वान् औरल स्टाइन ने किया है। इन लेखों की भाषा का मूल स्थान पेशावर के आसपास पश्चिमोत्तर प्रदेश माना जाता है। इनमें राजा की ओर से जिलाधीशों को आदेश, क्रय-विक्रय सम्बन्धी पत्र आदि उपलब्ध होते हैं। इन लेखों की प्राकृत निया प्राकृत नाम से जानी गई है। इस पर ईरानी, तोखारी और मंगोली भाषाओं का पर्याप्त प्रभाव पड़ा है।ये लेख ईसवी सन् की लगभग तीसरी शताब्दी में लिखे गये हैं। 103. गउडवहो गौडवध प्राकृत का ऐतिहासिक महाकाव्य है। इसके रचयिता महाकवि वाक्पतिराज हैं। ई. सन् 760 के लगभग कवि वाक्पतिराज ने इस महाकाव्य की 88 0 प्राकृत रत्नाकर
SR No.002287
Book TitlePrakrit Ratnakar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrem Suman Jain
PublisherRashtriya Prakrit Adhyayan evam Sanshodhan Samsthan
Publication Year2012
Total Pages430
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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