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________________ खरे उतरते हैं, तो समाज भी उन्हें विवाह-बंधन की अनुमति प्रदान कर देता है। काव्य-तत्त्वों की दृष्टि से यह महाकाव्य अत्यंत समृद्ध है। राजाओं के जीवनचरित के वर्णन काव्यात्मक शैली में प्रस्तुत हुए हैं। प्राकृतिक दृश्यों के कलात्मक वर्णन, सरस संवाद एवं अलंकारों का पांडित्यपूर्ण प्रयोग के कारण ही यह कथाग्रन्थ महाकाव्य की कोटि में गिना जाता है। 99.कृष्णचरित (कण्हचरिय) यह चरित श्राद्धदिनकृत्य नामक ग्रन्थ के अन्तर्गत दृष्टान्तरूप में आया है। वहीं से उद्धृत कर स्वतंत्र रूप से प्रकाशित किया गया है। इसमें 1163 प्राकृत गाथाएँ हैं। इसमें वसुदेवचरित, कंसचरित, चारुदत्तचरित, कृष्ण-बलरामचरित, राजीमतीचरित, नेमिनाथचरित, द्रौपदीहरण, द्वारिकादाह, बलदेव-दीक्षा, नेमिनिर्वाण और बाद में कृष्ण के भावि तीर्थकर-अमम नाम से होने का वर्णन किया गया है। समस्त कथा का आधार वसुदेवहिण्डी एवं जिनसेनकृत हरिवंशपुराण है।यह रचना आदि से अन्त तक कथा प्रधान है। 100.क्षेत्रसमास- श्वेताम्बर परम्परा में सूर्य और जम्बूद्वीप विषय निरूपण से सम्बद्ध जिनभद्रगणिकृत क्षेत्रसमास और संग्रहणी उल्लेखनीय है। इन रचनाओं के परिमाण में बहुत परिवर्द्धन हुआ है और उनके लघु एवं बृहद् संस्करण टीकाकारों ने प्रस्तुत किए हैं। उपलब्ध बृहत् क्षेत्र समास का दूसरा नाम त्रैलोक्य दीपिका है। इसमें 656 गाथाएँ हैं तथा पाँच अधिकार हैं। लघु क्षेत्रसमास रत्नशेखरसूरिकृत 262 गाथाओं में उपलब्ध है। रचनाकाल 14वीं शती है। बृहत्क्षेत्रसमास सोमतिलकसूरिकृत 489 गाथाओं में पाया जाता है। इसका भी रचनाकाल 14वीं शती है। इसमें अढाई द्वीप प्रमाण मनुष्य-लोक का वर्णन है। 101.खारबेल प्राकृत शिलालेख - ईसा-पूर्वकालीन सदियों की जैन मूर्तिकला, जैनधर्म के प्रभाव, विस्तार, जैन मुनि सम्मेलन, सम्राट् खारवेल की दक्षिण विजय एवं साहित्यिक-संगीति आदि सम्बन्धी ऐतिहासिक संसूचनाओं की सुरक्षा की दृष्टि से ईसा-पूर्व दूसरी सदी प्राकृत रत्नाकर 087
SR No.002287
Book TitlePrakrit Ratnakar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrem Suman Jain
PublisherRashtriya Prakrit Adhyayan evam Sanshodhan Samsthan
Publication Year2012
Total Pages430
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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