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________________ कोऊहल ने इस लीलावईकहा में सर्व प्रथम मंगलाचरण शरद् वर्णन, सज्जन दुर्जन, वर्णन एवं अपने परिवार का परिचय दिया है तथा प्रसंग के अनुसार कथा के भेदों की चर्चा भी की है। तदनन्तर अपनी पत्नी के आग्रह पर कवि उसे राजा सातवाहन एवं राजकुमारी लीलावती की कथा सुनाता है, जिसमें कई अवान्तर कथाओं का भी समावेश किया गया है। लीलावईकहा में प्रेमी एवं प्रेमिकाओं के सच्चे प्रेम एवं धैर्य की परीक्षा कर उन्हें विवाह-बन्धन में बाधा गया है। इस सांस्कृतिक प्रतिष्ठा के साथ-साथ इस काव्य में तत्कालीन राजाओं के जीवन का भी सुन्दर चित्रण किया गया है। राजा के गुणों एवं कर्तव्यों की भी प्रासंगिक चर्चा है। कथा का प्रवाह भी प्रसंग के अनुसार गतिशील हुआ है। पात्रों के मनोनत भावों को सरसता से अंकित किया गया है। भाषा सरल एवं प्रभाव छोड़ने वाली है। __काव्य में अलंकारों और काव्य विधानों का सुन्दर प्रयोग हुआ है। उत्प्रेक्षा, उपमा, रूपक, व्यतिरेक, समासोक्ति अपहनति, आदि अनेक अलंकारों का सटीक प्रयोग हुआ है। भ्रान्तिमान अलंकार का एक प्रयोग यहाँ दृष्टव्य है। किसी नगर की कामनियों के सोए हुए सौन्दर्य का वर्णन करते हुए कवि कहता है कि जहाँ पर घर के छतों पर सोई कामनियों के कपोलों में प्रतिबिम्बित चन्द्रकला के समूह को हंस मृणाल समझ कर उन्हें प्राप्त करने की इच्छा करते हैं । यथा घरसिर पसुत्त कामिणि-कवोल-संकेत ससिकलावलयं। हंसेहि अहिलसिज्इ मुणाल-सद्धालुएहि जहिं ॥63 ॥ प्राकृत साहित्य में लीलावतीकथा की गणना कथाग्रन्थ एवं शास्त्रीय महाकाव्य दोनों ही विधाओं में की गई है। इसके रचयिता 9वीं शताब्दी के महाकवि कोऊहल हैं। दिव्यमानुषी कथा के रूप में प्रसिद्ध इस ग्रन्थ में प्रतिष्ठान नगर के राजा सातवाहन एवं सिंहलद्वीप की राजकुमारी लीलावती की प्रणय कथा वर्णित है। मूल कथानक के साथ अनेक अवान्तर कथाएँ भी गुंफित हुई हैं। यह महाकाव्य किसी धार्मिक या आध्यात्मिक तथ्यों का प्रणयन करने की दृष्टि से नहीं लिखा गया है, लेकिन सामाजिक सन्दर्भो में इस नियम को दृढ़ करता है कि संयत प्रेमी-प्रेमिका यदि अपने प्रेम में दृढ़ हैं तथा विभिन्न प्रेम-परीक्षाओं में 860 प्राकृत रत्नाकर .. .
SR No.002287
Book TitlePrakrit Ratnakar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrem Suman Jain
PublisherRashtriya Prakrit Adhyayan evam Sanshodhan Samsthan
Publication Year2012
Total Pages430
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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