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रचना की है। वाक्पतिराज कन्नौज के राजा यशोवर्मन के आश्रय में रहते थे। अपने आश्रयदाता के प्रशंसार्थ ही उन्होंने इस काव्य की रचना की है। इस काव्य की कथावस्तु में यशोवर्मन द्वारा गौड (मगध ) देश के किसी राजा के वध किये जाने की घटना का वर्णन है। इसलिए इसका गउडवहो नाम सार्थक है ।
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काव्य का प्रारंभ लम्बे मंगलाचरण से हुआ है, जिसमें 61 गाथाओं में विभिन्न कवि ने प्राकृत काव्यों एवं कवियों के महत्त्व पर प्रकाश डाला है। मूल कथानक का आरंभ करीब 92वीं गाथा के बाद होता है । कथानक के प्रारम्भ में कवि ने अपने आश्रयदाता यशोवर्मन की बहुत प्रशंसा की है। उसे पौराणिक राजा पृथु से महान् बताते हुए विष्णु के अवतार के रूप में चित्रित किया है। इसके पश्चात् यशोवर्मन की वीरता एवं विजय यात्रा का वर्णन क्रम है, जिसमें वह सर्वप्रथम गौड (मगध) देश के राजा का वध करता है। इसके पश्चात् बंगराज, कोंकण, मस्देश, महेन्द्र पर्वत के निवासी आदि पर विजय प्राप्ति का वर्णन हुआ है । अंत में `इस विजय यात्रा के बाद यशोवर्मन कन्नौज लौंट जाता है । नायक के उत्तरार्ध जीवन का वर्णन इस काव्य में नहीं है। यह एक सरस काव्य है। जीवन के मधुर एवं कठोर दोनों ही पक्ष समान रूप से चित्रित किए गए हैं। एक ओर विजय यात्रा प्रसंग में आए अनेक तालाब, नदी, पर्वत आदि के काव्यात्मक चित्रण हैं, तो दूसरी ओर शत्रु पक्ष की विधवाओं के मार्मिक विलाप का जीवंत वर्णन भी प्रस्तुत हुआ है। ऋतु, वन, पर्वत, सरोवर, संध्या आदि के अलंकृत वर्णनों तथा प्रकृतिचित्रण की सजीवता के कारण ही यह उत्कृष्ट महाकाव्य कहलाता है। रूपक, उपमा, उत्प्रेक्षा, व्यंगोक्ति, दृष्टान्त आदि अलंकारों का आद्योपांत चारुविन्यास है। राजघराने के आतंक को व्यंगोक्ति के माध्यम से स्पष्ट करने वाला यह पद दृष्टव्य है
पत्थिवघरेसु गुणिणोवि णाम जड़ को वि सावयासव्व ।
सामण्णं तं ताण किं पि अण्णं चिय निमित्तं ॥ ... (गा. 876 ) अर्थात् - यदि कोई गुणी व्यक्ति राजमहलों में पहुँच जाता है, तो इसका कारण यही हो सकता है कि जन साधारण की वहाँ तक पहुँच है अथवा अन्य कोई कारण होगा, उसके गुण तो इसमें कदापि कारण नहीं हो सकते हैं ।
प्राकृत रत्नाकर 089