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________________ पुष्प बेचकर वहाँ से सोना लेकर आया था। कोई चीन (इंडो-चाइना) और महाचीन (चीन) में भैंस और मृगनाभि लेकर गया था और चीनांशुक लेकर लौटा था। कोई पुरुषों को लेकर स्त्रीराज्य (केरला, दक्षिण भारत) गया था और बदले में सोना लेकर लौटा था। कोई नीम के पत्ते लेकर रत्नद्वीप गया था और वहाँ से रत्नराशि लेकर लौटा था (65,22-66,4) इस ग्रन्थ में खन्यविद्या का उल्लेख है। इसमें गड़े हुए खजाने का पता लगाया जाता था जमीन खोदने से पहले निम्नलिखित मंत्र का पाठ किया जाता था। णमो इंदस्स, णमो धरणिंदस्स, णमो धणयस्स, णमो धनपालस्स (104, 3132) आयुर्वेद (आयु सत्थ) का प्रमाण उद्धत किया गया है (114, 22-28)। राजशुक का उल्लेख है जो अक्षरज्ञान, नाट्य धनुर्विद्या तथा गज, गवय, मृग, कुक्कुट, अश्व, पुरुष और महिला के लक्षणों का जानकार था (123, 24-25)। सामुद्रिकशास्त्र से प्राकृत की गाथायें उद्धृत की गई हैं (129, 8-131, 23)। तीर्थकरों के चिन्हों का उल्लेख है (128, 11) प्रसन्न हुए धरणेन्द्र द्वारा नमि और विनमि को अनेक प्रकार की विद्याओं के प्रदान किये जाने का उल्लेख है। इनमें से कितनी ही विद्यायें वंशकुंज में, कितनी ही चौराहों पर, कितनी ही महाअटवियों में, पर्वतों पर, कापालिक, मातंग, राक्षस, वानर, पुलिंद और शबर आदि का वेश धारण कर सिद्ध की जाती थीं। शबरी महाविद्या सिद्ध करने का विस्तृत वर्णन किया गया है (1321,33-133,13-14) उद्योतनसूरिकृत कुवलयमालाकहा प्राकृत साहित्य में अनेक दृष्टियों से महत्त्वपूर्ण है। इसमें प्रथम बार कथा के भेद प्रभेदों में संकीर्णकथा के स्वरूप का परिचय दिया गया है, जिसका उदाहरण यह कृति स्वयं है। गद्य-पद्य की मिश्रित विधा होने से चम्पूकाव्य के यह निकट है। इसमें गाथा के अतिरिक्त अन्य छंदों का प्रयोग हुआ है, जिससे गलीतक, चित्तक, एवं जम्मेहिका आदि नये छन्द प्रकाश में आये हैं । क्रोध आदि अमूर्त भावों को प्रभावशाली रूप में प्रस्तुत करने से कुवलयमालाकहा को भारतीय रूपात्मक काव्य परम्परा का जनक कहा जा सकता है। इसकी कथावस्तु कर्मफल, पुनर्जन्म एवं मूलवृत्तियों के परिशोधन जैसी सांस्कृतिक विचारधाराओं पर आधृत है। कुवलयमालाकहा के भौगोलिक प्राकृत रत्नाकर 081
SR No.002287
Book TitlePrakrit Ratnakar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrem Suman Jain
PublisherRashtriya Prakrit Adhyayan evam Sanshodhan Samsthan
Publication Year2012
Total Pages430
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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