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________________ समस्त अंगोपांगों का विशद् वर्णन किया गया है। भगवान् के समवसरण का सजीव चित्रण एवं उनकी महत्त्वपूर्ण उपदेश - विधि भी इसमें सुरक्षित है। श्रमण जीवन एवं स्थविर जीवन के वर्णन में द्वादशविध तप का भी इसमें विस्तृत विवेचन हुआ है। वस्तुतः यह आगम ज्ञान, दर्शन, चारित्र एवं तप के साधकों के लिए आचरणीय है। इसमें एक ओर जहाँ राजनैतिक, सामाजिक तथा नागरिक तथ्यों की चर्चा हुई है तो दूसरी ओर धार्मिक, दार्शनिक एवं सांस्कृतिक तथ्य भी प्रतिपादित हुए हैं। इस आगम की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि इसमें जिन विषयों की चर्चा की गई उनका पूर्ण विवेचन किया गया है। अन्य आगमों में, यहाँ तक कि अंगसूत्रों में भी इन्ही वर्णनों का संदर्भमात्र दिया गया है। भगवान महावीर के आ-नख-शिख समस्त अंगोपांगों का इतना विशद वर्णन अन्य किसी भी आगम में नहीं है । भगवान की शरीर-सम्पत्ति को जानने के लिए यही एकमात्र आधारभूत आगम है। उनके समवसरण का सजीव चित्रण और भगवान की महत्त्वपूर्ण उपदेशविधि भी इसमें सुरक्षित है। भगवान महावीर के जो सन्त थे वे उग्र, भोग, राजन्य, ज्ञात और कौरव कुलों के क्षत्रिय, भट, योद्धा, सेनापति, श्रेष्टि एवं इभ्य पुत्र थे। उनके मल, मूत्र, थूक और हस्तादिक के स्पर्श से रोगी पूर्ण स्वस्थ हो जाते थे। अनेक श्रमण मेधावी, प्रतिभासंपन्न, कुशलवक्ता और आकाशगामी विद्या में निष्णात थे। वे कनकावली, एकावली, क्षुद्रसिंहनि क्रीडित, महासिंहनि कीडित, भद्रप्रतिमा, महाभद्रप्रतिमा, सर्वतोभद्रप्रतिमा, आयंबिल, वर्धमान मासिक भिक्षुप्रतिमा, क्षुद्रमोकप्रतिमा, महामोकप्रतिमा, यवमध्यचन्द्रप्रतिमा और वज्रमध्यचन्द्रप्रतिमा आदि तपविशेष का आचरण करते थे। वे विद्यामंत्र में कुशल, परवादियों के मानमर्दन करने में पटु, द्वादशांगवेत्ता और विविध भाषाओं के ज्ञाता थे । बारह प्रकार के तप आदि में सदा निमग्न रहते थे। चम्पानगरी धन-धान्यादि से समद्ध और मनुष्यों से आकीर्ण थी। सैकड़ों हलों द्वारा यहाँ खेती की जाती थी, किसान अपने खेतों में ईख, जौ और चावल बोते 42 0 प्राकृत रत्नाकर
SR No.002287
Book TitlePrakrit Ratnakar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrem Suman Jain
PublisherRashtriya Prakrit Adhyayan evam Sanshodhan Samsthan
Publication Year2012
Total Pages430
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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