________________
तथा गाय, भैंस और भेड़ें पालते थे । यहाँ के लोग आमोद-प्रमोद के लिए कुक्कुटों और साँड़ों को रखते थे। यहाँ सुन्दर आकार के चैत्य तथा पण्य तरुणियों के मोहल्ले थे। लांच लेनेवालों, गंटकतरों, तस्करों और कोतवालों (खंडरक्खिअदंडपाशिक ) का यहाँ अभाव था । श्रमणों के यथेच्छ भिक्षा मिलती थी । नट, नर्तक, जल्ल (रस्सी पर खेल करने वाले ) मल्ल, मौष्टिक (मुष्टि से लड़ने वाले) विदूषक, कथावाचक, प्लवक (तैराक ), रास गायक, शुभाशुभ बखान करने वाले, लंख (बाँस के ऊपर खेल दिखलाने वाले), मंख (चित्र दिखाकर भिक्षा माँगने वाले), तूणा बजानेवाले, तुंब की वीणा बजाने वाले और ताल देकर खेल करने वाले यहाँ रहते थे। यह नगरी आराम, उद्यान, कूप, दीर्घिका ( बावड़ी ) और पानी की क्यारियों से जोभित थी। चारों ओर से खाई और खात से मंडित थी तथा चक्र, गदा, मुसुंढि, उरोह (छाती को चोट पहुँचाने वाला) शतघ्नी तथा निश्च्छिद्र कपाटों के कारण इसमें प्रवेश करना दुष्कर था । यह नगरी वक्र प्राकार (किला) वेजित, कपिशीर्षकों (कंगूरों) से शोभित तथा अट्टालिका, चरिका (गृह और प्राकार के बीच में हाथी आदि के जाने का मार्ग) द्वार गोपुर और तोरणों से मंडित थी । गोपुर के अर्गल (मूसल) और इन्द्रकील (ओट) कुशल शिल्पियों द्वारा बनाये गये थे। यहाँ के बाजारों में वणिक् और शिल्पी, अपना-अपना माल बेचते थे। चम्पा नगरी के राजमार्ग सुन्दर थे और हाथियों, घोड़ों, रथों और पालकियों के आवागमन से आकीर्ण रहते थे । - सूत्र 1 ।
वार्तानिवेदक से महावीर के आगमन का समाचार पाकर राजा कूणिक अत्यन्त प्रसन्न हुआ। उसने तुरंत ही अपने सेनापति को आदेश दिया - हे देवानुप्रिय ! शीघ्र ही हस्तिरत्न को सज्जित करो, चतुरंगिणी सेना को तैयार करो और सुभद्रा और रानियों के लिए अलग-अलग यानों को सजाओ । नगरी के गली-मोहल्लों को साफ करके उनमें जल का छिड़काव करो, नगरी को मंचों से विभूषित करो, जगह-जगह ध्वजा और पताकाएँ फहरा दो तथा गौशीर्ष और रक्तचन्दन के थापे लगवाकर सब जगह गन्धगुटिका आदि धूप महका दो (28-29)। सेनापति न नगररक्षकों को बुलाकर उन्हें नगर में छिड़काव आदि करने का आदेश दिया। सब तैयारी हो जाने पर सेनापति ने राजा कूणिक के पास पहुँचकर सविनय निवेदन किया कि महाराज गमन के लिए तैयार हो जायें- (30) ।
प्राकृत रत्नाकर 43